Sunday, 30 July 2017

Rainy monsoon means चौमासा के कर्तव्य-

श्रवण+श्रावण=श्रावणी
चौमासा के कर्तव्य-
चौमासा से तात्पर्य है वर्षा ऋतु।
वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही
पर्यटन, आवागमन दक्षिणायन के कारण विवाह आदि संस्कार उत्सव को छोड़कर पूरी तरह से कृषिकार्य में ध्यान लगाने का विधान है क्योंकि वर्षा वाली खेती में चूक से पूरा साल अन्न का संकट हो जाता है।
आषाढ़ और एक पक्ष श्रावण के परिश्रम से जब धान, मक्का, ज्वार, बाजरा , तिल, माष की खेती बढ़ने लहराने लगती है किसान के पास विशेष काम नहीं होता है ऐसे समय में
"श्रावणी उपाकर्म "
नाम का अनुष्ठान आरंभ होता है। नगर, ग्राम से दूर आश्रमों, साधनास्थलों से योगी, तपस्वी, विद्वानों को अपने- अपने नगर ग्राम में आमंत्रित करते हैं। श्रावण पूर्णिमा के दिन नर- नारी एकत्रित होकर नया यज्ञोपवीत जनेऊ धारण करते हैं। श्रेष्ठ विद्वान् के साथ स्वाध्याय और सत्संग का सत्र आरंभ होता है। योग और वेद शास्त्र के सिद्धांतों की सूक्ष्मता से अध्ययन, विवेचन, विमर्श किया जाता है, सभी शंकाओं पर गहन विमर्श द्वारा  समाधान होता है। योगाभ्यास और ध्यान का अभ्यास होता है। पूरे सत्र में वेद के किसी सूक्त, मण्डल, अध्याय, किसी उपनिषद व शास्त्र के स्वाध्याय पठन-पाठन​ को पूरा करने का संकल्प लिया जाता है।
इस श्रावणी उपाकर्म सत्र की परंपरा के कारण ,
वैदिक साहित्य के स्वाध्याय के कारण,
वैदिक विद्वानों और योगियों के साथ सत्संग और योगाभ्यास के कारण,
इस देश के निवासियों का आध्यात्मिक और भौतिक ज्ञान विश्व में सदैव चरम पर रहा।

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