Saturday, 31 August 2019

Anchoring

*Anchoring*
दोस्तों नमस्कार मैं ..........
रामगढ़ Fighters Success Support System (FSSS) एवं AWPL परिवार की तरफ से आप सभी को तहे दिल से स्वागत करता हूं। साथियों हम सौभाग्यशाली हैं कि आज हमें जिसने भी यहां आमंत्रित किया है वह हमारा शुभचिंतक है और धन्यवाद का पात्र है क्योंकि आज हमे एक ऐसी जानकारी मिलने वाली है जिसने लाखों लोगों की जिंदगियां बदल दी है। दोस्तों इस जानकारी को देने के लिए हमारे बीच में एक सक्सेस, सफल और डायनेमिक पर्सनैलिटी मौजूद हैं उनको स्टेज पर बुलाने से पहले मैं आपसे कुछ निवेदन करना चाहता हूँ।

Request number (1)

1.) कृपया अपना मोबाइल फोन बंद कर ले क्योंकि आप भी नहीं चाहेंगे कि जिंदगी बदलने वाली इस जानकारी में कोई  व्यवधान आए।

Request number (2)

2.) कृपया कार्यक्रम के दौरान आपस में बातचीत ना करें और बड़े ध्यान व शालीनता से सुने।

Request number (3)

3.) वैसे तो यह प्रोग्राम इस तरीके से डिजाइन किया गया है कि आपके मन में उठने वाले सभी प्रश्नों का जवाब स्वतः ही मिलता चला जाएगा लेकिन फिर भी क्लियर ना हो तो मेरी रिक्वेस्ट है कि उसे नोट कर ले बीच में ना पूछे लेकिन अंत में जरूर क्लियर करके जाएं।

इस कार्यक्रम की अवधि लगभग 1 घंटे की होगी।

अब मैं उस सफल व डायनेमिक पर्सनैलिटी और आपके बीच में बाधा ना बनते हुए उनको मंच पर आमंत्रित करना चाहता हूं और सहयोग भी चाहता हूं कि उनका बहुत ही जोरदार तालियां बजाकर स्वागत करें।
So, please welcome Mr.............
Thank you

Thursday, 29 August 2019

Christian conversion

#ईसाइयत_का_जोरदार_उतारा
क्रिश्चियनिटी के गाल पर हिंदुत्व का थपेड़ा
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अभी कुछ महीने पहले ही नई यूनिट में ट्रान्सफर आया हूँ चूँकि पिछली यूनिट में कई लोगों ने मेरी छवि एक सांप्रदायिक कट्टर हिन्दू की बना दी थी और कुछ लोगों ने मुझे इस्लाम और क्रिश्चियनिटी विरोधी बता दिया था,
सो इस यूनिट में मैं काफ़ी शाँत रहता था किसी भी धर्म पर मैं कोई भी बात नही करता था।
मेरे साथ एक सीनियर हैं जो 4 साल पहले हिंदू से क्रिस्चियन में कन्वर्ट हुए हैं, वो दिन रात क्रिश्चियनिटी की प्रशंसा करते रहते और हिंदुत्व को गालियाँ देते रहते थे, चूँकि उन्हें मेरे बारे में कोई जानकारी नही थी और नाही उन्होंने मेरी हिस्ट्री पढ़ी थी।
सो कल रविवार को बातों हिं बातों में उन्होंने मुझे क्रिश्चियनिटी में कन्वर्ट होने का ऑफ़र दे दिया और क्रिश्चियनिटी के फ़ायदे बताने लगे।

मैं कई दिनों से ऐसे मौके की तलाश में था क्योंकि मेरे दिमाग में क्रिस्चियन कन्वर्शन वाले मुद्दे को लेकर बड़ा फ़ितूर चल रहा था, मैं उसके ज्ञान का लेवल जानता था मैं जानता था की उसे क्रिश्चियनिटी और बाइबिल में कुछ भी नही आता है इसलिए मैंने उससे बहस करना जायज़ नही समझा। मैं बाइबिल को लेकर बड़े क्रिस्चियन फादर से बहस करना चाहता था सो मैंने उनका ऑफ़र स्वीकार कर लिया।

कल शाम को मैं अपने आठ जूनियर और उस सीनियर के साथ चर्च पहुँच गया, वहाँ कुछ परिवार भी हिन्दू से क्रिस्चियन कन्वर्शन के लिए आये हुए थे, और धर्म परिवर्तन कराने के लिए गोआ के किसी चर्च के फादर बुलाये गए थे। च र्च में प्रेयर हुई फिर उन्होंने क्रिश्चियनिटी और परमेश्वर पर लेक्चर दिया और होली वाटर के साथ धर्मान्तरण की प्रोसेस शुरू की।

मैंने अपने सीनियर से कहा की वो फ़ादर से रिक्वेस्ट करें की सबसे पहले मुझे कन्वर्ट करें।
फिर फ़ादर ने मुझे बुलाया और बोला " जीसस ने अशोक को अपनी शरण में बुलाया है मैं अशोक का क्रिश्चियनिटी में स्वागत करता हूँ"

मैंने फ़ादर से कहा की मुझे कन्वर्ट करने से पहले क्रिस्चियन और हिन्दू को कम्पेयर करते हुए उसके मेरिट और डिमेरित बताएँ। मैं कन्वर्ट होने से पहले बाइबिल पर आपके साथ चर्चा करना चाहता हूँ कृपिया मुझे आधा घण्टे का समय दें और मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दें।
फ़ादर को मेरे बारे में कोई जानकारी नही थी और उन्हें अंदाजा भी नही था की मैं यहाँ अपना लक्ष्य पूरा करने आया हूँ और उन्हें पता ही नही था की मैं अपना काम अपने प्लान के मुताबिक़ कर रहा हूँ।
उस फ़ादर को इस बात का अंदेशा भी नही था  की आज वो कितनी बड़ी आफ़त में फ़ंसने वाले हैं, सो फ़ादर बाइबिल पर चर्चा करने के लिए तैयार हो गए ।

【मैंने पूछा फ़ादर " क्रिश्चियनिटी हिन्दूत्व से किस तरह बेहतर है, परमेश्वर और बाइबिल में से कौन सत्य है,अगर बाइबिल और यीशु में से एक चुनना हो तो किसको चुनें"】

अब फ़ादर ने क्रिश्चियनिटी की प्रसंशा और हिंदुत्व की बुराइयाँ करनी शुरू की और कहा

1.यीशु ही एक मात्र परमेश्वर है और होली बाइबिल ही दुनियाँ में मात्र एक पवित्र क़िताब है। बाइबिल में लिखा एक एक वाक्य सत्य है वह परमेश्वर का आदेश है।
परमेश्वर ने ही पृथ्वी बनाई है।

2.क्रिश्चियनिटी में ज्ञान है जबकि हिन्दुओँ की किताबों में केवल अंध विश्वास है।

3.क्रिश्चियनिटी में समानता है जातिगत भेदभाव नही है जबकि हिंदुओं में जातिप्रथा है।

4.क्रिश्चियनिटी में महिलाओं को पुरुषों के बराबर सम्मान हैं जबकि हिन्दुओँ में लेडिज़ का रेस्पेक्ट नही है , हिन्दू धर्म में लेडिज़ के साथ सेक्सुअल हरासमेंट ज़्यादा है।

5.क्रिस्चियन कभी भी किसी को धर्म के नाम पर नही मारते जबकि हिन्दू  धर्म के नाम् पर लोगों को मारते हैं बलात्कार करते हैं हिन्दू बहुत अत्याचारी होते हैं।

6.हिंदुओ में नंगे बाबा घूमते हैं सबसे बेशर्म धर्म है हिन्दू।

अब मैंने बोलना शुरू किया की फ़ादर मैं आपको बताना चाहता हूँ की

1. जैसा आपने कहा की परमेश्वर ने पृथ्वी बनाई है और बाईबल में एक एक वाक्य सत्य लिखा है और वह पवित्र है,
तो बाईबल के अनुसार पृथ्वी की उत्त्पति ईशा के जन्म से 4004 वर्ष पहले हुई अर्थात बाइबिल के अनुसार अभी तक पृथ्वी की उम्र 6020 वर्ष हुई जबकि साइंस के अनुसार(कॉस्मोलॉजि)  पृथ्वी 4.8 बिलियन वर्ष की है जो बाइबिल में बतायी हुई वर्ष के बहुत ज़्यादा है। आप भी जानते हो साइंस ही सत्य है
अर्थात बाइबिल का पहला अध्याय ही बाइबिल को झूँठा घोषित कर रहा है मतलब बाइबिल एक फ़िक्शन बुक है जो मात्र झूँठी कहानियों का संकलन है,
जब बाइबिल ही असत्य है तो आपके परमेश्वर का कोई अस्तित्व ही नही बचता।

2.आपने कहा की क्रिश्चियनिटी में ज्ञान है तो आपको बता दूँ की क्रिश्चियनिटी में ज्ञान नाम का कोई शब्द नही है , याद करो जब "ब्रूनो" ने कहा था की पृथ्वी सूरज की परिक्रमा लगाती है तो चर्च ने ब्रूनो को 'बाइबिल को झूंठा साबित करने के आरोप में जिन्दा जला दिया था और गैलीलियो को इस लिए अँधा कर दिया गया क्योंकि उसने कहा था 'पृथ्वी के आलावा और भी ग्रह हैं' जो बाइबिल के विरुद्ध था ।
अब आता हूँ हिंदुत्व में तो फ़ादर हिंदुत्व के अनुसार पृथ्वी की उम्र ब्रह्मा के एक दिन और एक रात के बराबर है जो लगभग 1.97 बिलियन वर्ष है जो साइंस के बताये हुए समय के बराबर है और साइंस के अनुसार  ग्रह नक्षत्र तारे और उनका परिभ्रमण हिन्दुओँ के ज्योतिष विज्ञानं पर आधारित है , हिन्दू ग्रंथो के अनुसार 9 ग्रहों की जीवनगाथा वैदिक काल में ही बता दी गयी थी। ऐसे ज्ञान देने वाले संतो को हिन्दुओँ ने भगवान के समान पूजा है नाकि जिन्दा जलाया या अँधा किया।
केवल हिन्दू धर्म ही ऐसा है जो ज्ञान और गुरु को भगवान से भी ज़्यादा पूज्य मानता है जैसे
"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवोमहेश्वरः
गुरुर्साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरूवे नमः।।

और फ़ादर दुनियाँ में केवल हिन्दू ही ऐसा है जो कण कण में ईश्वर देखता है और ख़ुद को "अह्मब्रह्मस्मि" बोल सकता है इतनी आज़ादी केवल हिन्दू धर्म में ही हैं।

3. आपने कहा की 'क्रिश्चियनिटी में समानता है जातिगत भेदभाव नही है तो आपको बता दूँ की
क्रिश्चियनिटी पहली शताब्दी में तीन भागों में बटी हुई थी जैसे Jewish Christianity , Pauline Christianity, Gnostic Christianity.
जो एक दूसरे के घोर विरोधी थे उनके मत भी अलग अलग थे।
फिर क्रिश्चियनिटी Protestant, Catholic Eastern Orthodoxy, Lutherans में विभाजित हुई जो एक दूसरे के दुश्मन थे, जिनमें ' कुछ लोगों को मानना था की "यीशु" फिर जिन्दा हुए थे तो कुछ का मानना है की यीशु फिर जिन्दा नही हुए, और कुछ ईसाई मतों का मानना है की "यीशु को सैलिब पर लटकाया ही नही गया"
आज ईसाईयत हज़ार से ज़्यादा भागों में बटी हुई है, जो पूर्णतः रँग भेद (श्वेत अश्वेत ) और जातिगत आधारित है आज भी पुरे विश्व में कनवर्टेड क्रिस्चियन की सिर्फ़ कनवर्टेड से ही शादी होती है।
आज भी अश्वेत क्रिस्चियन को ग़ुलाम समझा जाता है।
फ़ादर भेदभाव में ईसाई सबसे आगे हैं हैम के वँशज के नाम पर अश्वेतों को ग़ुलाम बना रखा है।

4. आपने कहा की क्रिश्चियनिटी में महिलाओं को पुरुष के बराबर अधिकार है, तो बाईबल के प्रथम अध्याय में एक ही अपराध के लिये परमेश्वर ने ईव को आदम से ज्यादा दण्ड क्यों दिया, ईव के पेट को दर्द और बच्चे जनने का श्राप क्यों दिया आदम को ये दर्द क्यों नही दिया अर्थात आपका परमेश्वर भी महिलाओं को पुरुषों के समान नही समझता।
आपके ही बाइबिल में "लूत" ने अपनी ही दोनों बेटियों का बलात्कार किया और इब्राहीम ने अपनी पत्नी को अपनी बहन बनाकर मिस्र के फिरौन (राजा) को सैक्स के लिए दिया।

आपकी ही क्रिश्चियनिटी ने पोप के कहने पर अब तक 50 लाख से ज़्यादा बेक़सूर महिलाओं को जिन्दा जला दिया। ये सारी रिपोर्ट आपकी ही बीबीसी न्यूज़ में दी हुईं हैं।
आपकी ही ईसाईयत में 17वीं शताब्दी तक महिलाओं को चर्च में बोलने का अधिकार नही था, महिलाओं की जगह प्रेयर गाने के लिए भी 15 साल से छोटे लड़को को नपुंसक बना दिया जाता था उनके अंडकोष निकाल दिए जाते थे महिलाओं की जगह उन बच्चों से प्रेयर करायी जाती थी।
बीबीसी के सर्वे के अनुसार सभी धर्मों के  धार्मिक गुरुवों में  सेक्सुअल केस में सबसे ज़्यादा "पोप और नन" ही एड्स से मरे हैं जो ईसाई ही हैं।

फ़ादर क्या यही क्रिश्चियनिटी में नारी सम्मान है।

अब आपको हिंदुत्व में बताऊँ। दुनियाँ में केवल हिन्दू ही है जो कहता है " यत्र नारियन्ति पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है वहीँ देवताओं का निवास होता है,।

5. फ़ादर आपने कहा की क्रिस्चियन धर्म के नाम पर किसी को नही मारते तो आपको बता दूँ 'एक लड़का हिटलर जो कैथोलिक परिवार में जन्मा उसने जीवनभर चर्च को फॉलो किया उसने अपनी आत्मकथा "MEIN KAMPF" में लिखा ' वो परमेश्वर को मानता है और परमेश्वर के आदेश से ही उसने 10 लाख यहूदियों को मारा है' हिटलर ने हर बार कहा की वो क्रिस्चियन है। चूँकि हिटलर द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण था जिसमें सारे ईसाई देश एक दूसरे के विरुद्ध थे इसलिए आपके चर्च और पादरियों ने उसे कैथोलिक से निकाल कर Atheist(नास्तिक) में डाल दिया।

फ़ादर मैं इस्लाम का हितेषी नही हूँ लेकिन आपको बता दूँ क्रिस्चियनों ने सन् 1096 में ने "Crusade War" धर्म के आधार पर ही स्टार्ट किया था जिसमें पहला हमला क्रिस्चियन समुदाय ने मुसलमानों पर किया।
जिसमें लाखों  मासूम मारे गए।
फ़ादर "आयरिश आर्मी" का इतिहास पढ़ो किस तरह कैथोलिकों ने धर्म के नाम पर क़त्ले आम किया जो आज के isis से भी ज़्यादा भयानक था।

धर्म के नाम पर क़त्लेआम करने में क्रिस्चियन मुसलमानों के समान ही हैं, वहीँ आपने हिन्दुओँ को बदनाम किया तो आपको बता दूँ की "हिन्दू ने कभी भी दूसरे धर्म वालों को मारने के लिए पहले हथियार नही उठाया है, बल्कि अपनी रक्षा के लिए हथियार उठाया है।

6. फ़ादर आपने कहा की हिन्दुओँ में नंगे बाबा घूमते हैं "हिन्दू बेशर्म" हैं तो फ़ादर आपको याद दिला दूँ की बाइबिल के अनुसार यीशु ने प्रकाशितवाक्य (Revelation) में कहा है की " nudity is best purity" नग्नता सबसे शुद्ध है।
यीशु कहता है की मेरे प्रेरितों अगर मुझसे मिलना है तो एक छोटे बच्चे की तरह नग्न हो कर मुझसे मिलों क्योंकि नग्नता में कोई लालच नही होता।

फ़ादर याद करो यूहन्ना का वचन 20:11-25 और लूका के वचन 24:13-43 क्या कहते नग्नता के बारे में।

फ़ादर ईसाईयत में सबसे बड़ी प्रथा Bapistism है, जो बाइबिल के अनुसार येरूसलम की यरदन नदी में नग्न होकर ली जाती थी।
अभी इस वर्ष फ़रवरी में ही न्यूजीलैंड के 1800 लोगों ने जिसमे 1000 महिलाएं थी ने पूर्णतः नग्न होकर बपिस्टिसम लिया। और आप कहते हो की हिन्दू बेशर्म है।

अब चर्च के सभी लोग मुझ पर भड़क चुके थे और ग़ुस्से में कह रहे थे आप यहाँ क्रिश्चियनिटी में कन्वर्ट होने नही आये हो आप फ़ादर से बहसः करने आये हो, परमेश्वर आपको माँफ नही करेगा।

मैंने फ़ादर से कहा की यीशु ने कहा है " मेरे प्रेरितों मेरा प्रचार प्रसार करो" अब जब आप यीशु का प्रचार करोगे तो आपसे प्रश्न भी पूछे जाएँगे आपको ज़बाब देना होगा, मैं यीशु के सामने बैठा हुआ हूँ और वालंटियर क्रिस्चियन बनने आया हूँ ।
मुझे आप सिर्फ़ ज्ञान के सामर्थ्य पर क्रिस्चियन बना सकते है धन के लालच में नही।

अब फ़ादर ख़ामोश बैठा हुआ था शायद सोच रहा होगा की आज किस से पाला पड़ गया।

मैंने फिर कहा फ़ादर आप यीशु के साथ गद्दारी नही कर सकते " आप यहाँ सिद्ध करके दिखाओ की ईसाईयत हिंदुत्व से बेहतर कैसे है"

मैंने फिर फ़ादर से कहा की फ़ादर ज़वाब दो आज आपसे ही ज़वाब चाहिए क्योंकि आपके ये 30 ईसाई इतने सामर्थ्यवान नही है की ये हिन्दू के प्रश्नों का ज़वाब दे सकें।
फ़ादर अभी भी शाँत था, मैंने कहा फ़ादर अभी तो मैंने  शास्त्र खोले भी नही है शास्त्रों के ज्ञान के सामने आपकी बाइबिल कहीं टिकती भी नही है।

अब फ़ादर ने काफ़ी सोच समझकर रविश स्टाइल में मुझसे पूछा 'आप किस जाति से हो'
मैंने भी चाणक्य स्टाइल में ज़वाब दे दिया ,
"मैं सेवार्थ शुद्र, आर्थिक वैश्य, रक्षण में क्षत्रिय, और ज्ञान में ब्राह्मण हूँ।
और हाँ फ़ादर मैं कर्मणा "फ़ौजी" हूँ और जाति से "हिन्दू"

अब चर्च में बहुत शोर हो चूका था मेरे जूनियर बहुत खुश थे बाकि सभी ईसाई मुझ पर नाराज़ थे, लेकिन करते भी क्या मैने उनकी ही हर बात को काटने के लिए बाइबिल को आधार बना रखा था और हर बात पर बाइबिल को ही ख़ारिज कर रहा था।

मैंने फ़ादर से कहा मेरे ऊपर ये जाति वाला मन्त्र ना फूँके, आप सिर्फ़ मेरे सवालों का ज़वाब दें।

अब मैंने उन परिवारों को जो कन्वर्ट होने के लिए आये थे को कहा " क्या आप लोगों को पता है की वेटिकन सिटी एक हिन्दू से क्रिस्चियन कन्वर्ट करने के लिए मिनिमम 2 लाख रुपये देती है जिसमें से आपको 1लाख या 50 हज़ार दिया जाता है बाकि में 20 से 30 हज़ार तक आपको कन्वर्ट करने के लिए चर्च लेकर आने वाले आदमी  को दिया जाता है बाकि का 1 लाख चर्च रखता है।
जब आप कन्वर्ट हो जाते हो तब आपको परमेश्वर के नाम से डराया जाता है फिर आपको हर सन्डे चर्च आना पड़ता है और हर महीने अपनी पॉकेट मनी या फिक्स डिपाजिट चर्च को डिपॉजिट करना पड़ता है, आपको 1 लाख देकर चर्च आपसे कम से कम दस लाख वसूल करता है, अगर आपके पास पैसा नही होता तो आपको परमेश्वर के नाम से डराकर आपकी जमीन किसी क्रिस्चियन ट्रस्ट के नाम पर डोनेट(दान) करा ली जाती है,

अब आप मेरे सीनियर को ही देख लो, इन्होंने कन्वर्ट होने के लिए 1 लाख लिया था लेकिन 4 साल से हर महीने 15 हज़ार चर्च को डिपाजिट कर रहे हैं, अभी भी वक्त है सोच लो।

आप सभी को बता दूँ की एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में धार्मिक आधार पर सबसे ज़्यादा जमीन क्रिस्चियन ट्रस्टों पर हैं, जिन्हें आप जैसे मासूम कन्वर्ट होने वालो से परमेश्वर के नाम पर डरा कर हड़प लिया गया है।

अब मेरा इतना कहते ही सारे क्रिस्चियन भड़क चुके थे तभी यहाँ के पादरी ने गोआ वाले फ़ादर से कहा की 11बज चुके हैं चर्च को बन्द करने का टाइम है।

मैंने फ़ादर से कहा की आपने मेरे सवालों का ज़वाब नही दिया मैं आपसे बाइबिल पर चर्चा करने आया था,
आप जो पैसे लेकर कन्वर्ट करते हो वो बाईबल में सख्त मना है याद करो गेहजी, यहूदा इस्तविको का हस्र जिसनें धर्म में लालच किया। जिस तरह परमेश्वर ने उन्हें मारा ठीक उसी तरह आपका ही परमेश्वर आपको मारेगा , आप में से किसी भी क्रिस्चियन को जो पैसे लेकर कन्वर्ट हुआ फ़िरदौस ( यीशु का राज्य) में प्रवेश नही मिलेगा।

अब चर्च बंद होने का समय हो चूका था मैंने जाते जाते फ़ादर को "थ्री इडियट" स्टाइल में कहा " फ़ादर फिर से बाईबल पढ़ो समझों, और जहाँ समझ ना आये तो मुझे फ़ोन करके पूछ लेना क्योंकि मैं अपने कमज़ोर स्टूडेंट का हाथ कभी नही छोड़ता,

और आते आते मैं सारे क्रिस्चियनों को बोल आया की "मेरे क्रिस्चियन

भाइयों अपने वेटिकन वाले चचाओं को बता दो की भारत से ईसाईयत का बोरी बिस्तर उठाने का समय आ गया है उन्हें बोल दो अब भारत में हिन्दू जाग चूका है अब हिन्दू ने भी शस्त्र के साथ शास्त्र उठा लिया है जितना जल्दी हो यहाँ से कट लो"

जय हिन्द

Sunday, 25 August 2019

Your body

*IF YOU ARE ABOVE 50 YRS OF AGE, HEALTH HINTS FOR YOU*

*A. Two things to check as often as you can*
(1) Your blood pressure
(2) Your blood sugar

*B. Six things to reduce to the minimum on your foods:*
(1) Salt
(2) sugar
(3) preserved meat and foods
(4) red meat especially roasted
(5) dairy products
(6) starchy products

*C. Four things to increase in your foods’*
(1) Greens/vegetables
(2) beans
(3) fruits
(4) nuts

*D. Three things you need to forget:*
(1) Your age
(2) your past
(3) your grievances

*E. Four things you must have, no matter how weak or how strong you are:*
(1) Friends who truly love you
(2) caring family
(3) positive thoughts
(4) a warm home.

*F. Five things you need to do to stay healthy:*
(1) fasting
(2) smiling / laughing 
(3) trek / exercise
(4) reduce your weight.

*G. Six things you don't have to do:*
(1) Don't wait till you are hungry to eat
(2) don't wait till you are thirsty to drink
(3) don't wait till you are sleepy to sleep
(4) don't wait till you feel tired to rest
(5) don't wait till you get sick to go for medical check-ups otherwise you will only regret later in life
(6) don’t wait till you have problem before you pray to your God.

TAKE CARE OF YOURSELF !!!

Saturday, 24 August 2019

Ekadashi vaastu

*प्रशासक समिति✊🚩*

*🚩जय सनातन:-सनातन पञ्चाङ्ग🚩*

*आज का सनातन पञ्चाङ्ग🚩*

⛅ *दिनांक 25 अगस्त 2019*
⛅ *दिन - रविवार*
⛅ *विक्रम संवत - 2076*
⛅ *शक संवत -1941*
⛅ *अयन - दक्षिणायन*
⛅ *ऋतु - वर्षा*
⛅ *मास - भाद्रपद*
⛅ *पक्ष - कृष्ण*
⛅ *तिथि - नवमी सुबह 08:10 तक तत्पश्चात दशमी*
⛅ *नक्षत्र - मॄगशिरा 26 अगस्त प्रातः 04:00 तक तत्पश्चात आर्द्रा*
⛅ *योग - हर्षण दोपहर 02:19 तक तत्पश्चात वज्र*
⛅ *राहुकाल - शाम 05:13 से शाम 06:48 तक*
⛅ *सूर्योदय - 06:21*
⛅ *सूर्यास्त - 19:00*
⛅ *दिशाशूल - पश्चिम दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण - नंद महोत्सव, गोगा नवमी*
💥 *विशेष - नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

🌷 *एकादशी व्रत के लाभ* 🌷
➡ *26 अगस्त 2019 सोमवार को सुबह 07:04 से 27 अगस्त, मंगलवार को सुबह 05:10 तक एकादशी है ।*
💥 *विशेष - 27 अगस्त, मंगलवार को एकादशी का व्रत उपवास रखें ।*
🙏🏻 *एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है ।*
🙏🏻 *जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।*
🙏🏻 *जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।*
🙏🏻 *एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं ।इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है ।*
🙏🏻 *धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है ।*
🙏🏻 *कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है ।*
🙏🏻 *परमात्मा की प्रसन्नता प्राप्त होती है ।पूर्वकाल में राजा नहुष, अंबरीष, राजा गाधी आदि जिन्होंने भी एकादशी का व्रत किया, उन्हें इस पृथ्वी का समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हुआ ।भगवान शिवजी  ने नारद से कहा है : एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमे कोई संदेह नहीं है । एकादशी के दिन किये हुए व्रत, गौ-दान आदि का अनंत गुना पुण्य होता है ।*

🌷 *एकादशी के दिन करने योग्य* 🌷
🙏🏻 *एकादशी को दिया जला के विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें .......विष्णु सहस्त्र नाम नहीं हो तो १० माला गुरुमंत्र का जप कर लें l अगर घर में झगडे होते हों, तो झगड़े शांत हों जायें ऐसा संकल्प करके विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें तो घर के झगड़े भी शांत होंगे l*

🌷 *एकादशी के दिन ये सावधानी रहे* 🌷
🙏🏻 *महीने में १५-१५ दिन में  एकादशी आती है एकादशी का व्रत पाप और रोगों को स्वाहा कर देता है लेकिन वृद्ध, बालक और बीमार व्यक्ति एकादशी न रख सके तभी भी उनको चावल का तो त्याग करना चाहिए एकादशी के जो दिन चावल खाता है... तो धार्मिक ग्रन्थ से एक- एक चावल एक- एक कीड़ा खाने का पाप लगता है...ऐसा डोंगरे जी महाराज के भागवत में डोंगरे जी महाराज ने कहा*

🙏🚩🇮🇳🔱🏹🐚🕉

Why gopi loves Krishna

*कृष्ण के प्रति स्त्रियों के अति आकर्षित होने में क्या कारण थे? हजारों-लाखों गोपियां उनके पीछे दीवानी थीं, और उनके सहवास से ही उन्हें तृप्ति मिलती थी, ऐसा क्यों होता था?*

_यदि प्रेमपूर्णता से कामशून्यता आती है, तो कामशून्यता की उपलब्धि के बाद कैसे बच्चे पैदा होंगे? अर्थात कामशून्यता में संभोग कैसे घटित होगा? क्या आत्म-समाधि, ब्रह्म-समाधि और निर्वाण-समाधि के बाद संभोग संभव है? क्योंकि संभोग के लिए प्राणों की चंचलता आवश्यक है न?’_

इस संबंध में बहुत-सी बात तो हो गई है, इसलिए कुछ थोड़ी-सी बातें और खयाल में ले लेनी चाहिए।

कृष्ण के प्रति आकर्षण लाखों स्त्रियों का ठीक ऐसा ही है जैसे पहाड़ से पानी भागता है नीचे की तरफ और झील में इकट्ठा हो जाता है? अगर हम पूछेंगे तो उत्तर यही होगा कि क्योंकि झील झील है। गङ्ढा है, पानी गङ्ढे में भर जाता है। गिरता है पर्वत के शिखर पर, भरता है झील में। पर्वत के शिखर पानी को नहीं रोक पाते हैं। पानी का स्वभाव है कि वह गङ्ढे को खोजे, क्योंकि वहीं वह निवास कर सकता है।

अगर हम इसको ठीक से समझें तो स्त्री का स्वभाव है कि वह पुरुष को खोजे। वह पुरुष में ही निवास कर सकती है। पुरुष का स्वभाव है कि वह स्त्री को खोजे, वह स्त्री में निवास कर सकता है। यह स्वभाव है। यह वैसे ही स्वभाव है जैसे और जीवन की सारी चीजों का स्वभाव है। जैसे आग का कुछ स्वभाव है, जैसे पानी का कुछ स्वभाव है, ऐसे ही पुरुष होने का स्वभाव है कि वह स्त्री में अपने को खोजे। अगर ठीक से हम समझें तो पुरुष का मतलब है, वह स्त्री में अपने को खोजता है। स्त्री का मतलब है, वह जो पुरुष में अपने को खोजती है। स्त्रैण होने का मतलब ही यही है कि जो पुरुष के बिना अधूरी है। पुरुष होने का मतलब यही है, जो स्त्री के बिन अधूरा है। अधूरा होना स्त्री-पुरुष का होना है। इसलिए उनकी निरंतर खोज है। और जब यह खोज पूरी नहीं हो पाती तो “फ्रस्ट्रेशन’ है। जब यह खोज पूरी नहीं हो पाती तो दुख है, पीड़ा है, परेशानी है। जब यह खोज पूरी नहीं हो पाती तो स्वभाव के प्रतिकूल होने के कारण कष्ट है, संताप है, चिंता है।

कृष्ण के प्रति इतने आकर्षण का एक ही कारण है कि कृष्ण पूरे पुरुष हैं। जितना पूर्ण पुरुष होगा उतना आकर्षक हो जाएगा स्त्रियों को। जितनी स्त्री पूर्ण होगी उतनी आकर्षक हो जाएगी पुरुषों को। पुरुष की पूर्णता कृष्ण में पूरी तरह प्रगट हो सकी है। महावीर कम पुरुष नहीं हैं। ठीक कृष्ण जैसे ही पूरे पुरुष हैं। लेकिन महावीर की पूरी साधना, अपने पुरुष होने को छोड़ देने की साधना है। महावीर की पूरी साधना वह जो स्त्री-पुरुष के नियम का जगत है, उसके पार हो जाने की साधना है। फिर भी इस सारी साधना के बावजूद भी महावीर की भिक्षुणियां चालीस हजार हैं और भिक्षु दस हजार हैं। फिर भी स्त्रियां ही ज्यादा आकर्षित हुई हैं। जहां चार साधु महावीर के पीछे थे वहां तीन स्त्रियां हैं और एक पुरुष है। तो अगर महावीर के पास भी चालीस हजार संन्यासिनियां इकट्ठी हो जाती हैं, ऐसे व्यक्ति के पास जिसकी सारी साधना पुरुष और स्त्री होने के “ट्रांसेंडेंस’ की है, पार जाने की है, जो अपने पुरुष होने को इनकार करता है, किसी के स्त्री होने को इनकार करता है, जो कहता है कि यह संसार की बातें हैं, इनसे पार सब है। लेकिन वह भी स्त्रियों के लिए आकर्षक है।

 महावीर को छू भी नहीं सकतीं वे स्त्रियां। महावीर के निकट भी नहीं बैठ सकतीं आकर। लेकिन फिर भी स्त्रियां महावीर के लिए कम दीवानी नहीं हैं। हालांकि इस बात को हम इस तरह कभी देखा नहीं गया। और जो दस हजार पुरुष महावीर के पास आए हैं, इनकी भी अगर हम कभी बहुत खोजबीन करें तो पता चलेगा कि इनके चित्त में कहीं-न-कहीं स्त्रैणता है। होगी। जरूरी नहीं है कि एक आदमी शरीर से पुरुष हो तो मन से भी पुरुष हो। ऐसा भी जरूरी नहीं है कि एक स्त्री शरीर से स्त्री हो तो मन से भी स्त्री हो। मन जरूरी रूप से शरीर के साथ सदा तालमेल नहीं रखता। या बहुत कम तालमेल भी रखता है। कई बार ऐसा हो जाता है कि शरीर पुरुष का होता है, लेकिन चित्त स्त्री की तरफ झुका हुआ होता है। तो जो पुरुष महावीर के पास इकट्ठे होते हैं, अगर न दस हजार का भी ठीक कभी कोई मानसिक-परीक्षण हो सके, तो हम पाएंगे कि इसमें भी स्त्री-चित्त की बहुतायत है। होगी ही। महावीर आकर्षक तभी हो पाते हैं जब भीतर है। महावीर का आकर्षण आधी बात है। हमारा चित्त भी तो उस तरफ बहना चाहिए।

तो कृष्ण के साथ तो और भी अदभुत स्थिति है। कृष्ण तो कुछ छोड़कर भागे हुए नहीं हैं। स्त्रियां उनके पास सिर्फ साध्वी होकर खड़ी रह सकती हैं, ऐसा नहीं है। सिर्फ उनको देख सकती हैं, ऐसा नहीं है। कृष्ण के साथ नाच भी सकती हैं। तो अगर कृष्ण के पास लाखों स्त्रियां इकट्ठी हो गईं हों, तो कुछ आश्चर्य नहीं है। सहज है। बिलकुल सरलता से है।

बुद्ध वैसे ही पूर्ण पुरुष हैं। इसलिए बहुत मजेदार घटना घटी है। बुद्ध ने स्त्रियों को दीक्षा देने से इनकार कर दिया। बुद्ध ने इनकार कर दिया कि स्त्रियों को दीक्षा नहीं देंगे। क्योंकि बुद्ध के सामने खतरा बिलकुल साफ है। वह खतरा यह है कि स्त्रियां दौड़ पड़ेंगी और भारी भीड़ स्त्रियों की इकट्ठी हो जाएगी। और जरूरी नहीं है कि ये स्त्रियां साधना के लिए ही आतुर होकर आई हों, बुद्ध का आकर्षण बहुत कीमती हो सकता है। कोई कृष्ण के पास जो गोपियां पहुंच गईं हैं, वे कोई परमात्म-उपलब्धि के लिए ही पहुंच गईं, ऐसा नहीं है। कृष्ण भी काफी परमात्मा हैं। इन कृष्ण के पास होना भी बड़ा सुखद है।

 तो कृष्ण को तो इसकी चिंता नहीं होती कि कौन किसलिए आया है, क्योंकि कृष्ण का कोई चुनाव नहीं है, लेकिन बुद्ध को चुनाव है। और बुद्ध सख्ती से इनकार करते हैं कि स्त्रियों को दीक्षा नहीं देंगे। और बड़े दिनों तक यह संघर्ष चलता है और स्त्रियों का बड़ा आंदोलन चलता है। और स्त्रियां सख्ती से बुद्ध की इस बात की खिलाफत करती हैं कि हमारा क्या कसूर है कि हमें दीक्षा नहीं मिलेगी! और बड़ी मजबूरी में और बड़े दबाव में और बड़े आग्रह में बुद्ध राजी होते हैं। अब यह थोड़ा सोचने जैसा मामला है, कि बुद्ध का इतनी देर तक यह कहे चले जाना कि नहीं दूंगा दीक्षा, क्योंकि बुद्ध को इसमें साफ एक बात दिखाई पड़ती है कि जो सौ स्त्रियां आती हैं उसमें निन्यानबे के आने की संभावना का कारण बुद्ध हैं, बुद्धत्व नहीं। यह साफ दिखाई पड़ रहा है। यह इतना साफ दिखाई पड़ रहा है कि बुद्ध “रेज़िस्ट’ करते हैं।

लेकिन तब कृशा गौतमी नाम की एक स्त्री बुद्ध को कहती है कि क्या हम स्त्रियों को बुद्धत्व नहीं मिलेगा? फिर आप कब दुबारा आएंगे हमारे लिए? और अगर हम चूके तो जिम्मेदारी तुम्हारी होगी। हमारा कसूर क्या है? हमारा स्त्री होना कसूर है? यह सौवीं स्त्री है, निन्यानबे वाली स्त्री नहीं है। इस कृशा गौतमी के लिए बुद्ध को झुकना पड़ता है। यह बुद्ध के लिए नहीं आई है, बुद्धत्व के लिए आई है। वह कहती है हमें तुमसे प्रयोजन नहीं है, लेकिन तुम्हारे होने का लाभ पुरुष ही उठा पाएंगे? हम सिर्फ स्त्री होने से वंचित रह जाएंगे? स्त्री होने का ऐसा दंड हमें मिल रहा है! और आप भी इतने चुनाव करते हैं? तो कृशा गौतमी को आज्ञा दी जाती है। फिर द्वार खुल जाता है। और फिर वही होता है जो महावीर के पास हुआ। पुरुष कम पड़ जाते हैं, स्त्रियां रोज ज्यादा होती चली जाती हैं।

आज भी मंदिरों में स्त्रियां ज्यादा हैं, पुरुष कम हैं। तब तक पुरुष मंदिरों में कम होंगे, जब तक स्त्री तीर्थंकर और स्त्री अवतारों की मूर्तियां मंदिर में न हों। तब तक कम होंगे। क्योंकि सौ जाते हैं, उसमें से निन्यानबे बहुत सहज कारणों से जाते हैं, एक ही असहज कारण से जाता है।

कृष्ण के पास तो बहुत ही सरल बात है। कृष्ण के लिए तो कोई बाधा ही नहीं है। कृष्ण तो जीवन की समग्रता को अंगीकार कर लेते हैं। और कृष्ण अपने पुरुष होने को स्वीकार करते हैं, किसी के स्त्री होने को स्वीकार करते हैं। सच तो यह है कि कृष्ण ने शायद भूलकर भी जरा-सा भी अपमान किसी स्त्री का नहीं किया। जीसस के वचनों में भी संभावना है, महावीर के वचनों में भी, बुद्ध के वचनों में भी–स्त्री के अपमान की संभावना है। और कारण सिर्फ इतना ही है कि वे अपने पुरुष होने को मिटाना चाह रहे हैं, और कोई कारण नहीं है। स्त्री से कोई वास्ता नहीं है। महावीर, या बुद्ध, या जीसस अपने “सेक्सुअल बीइंग’ को, अपने “बायोलाजिकल बीइंग’ को, अपने जैविक अस्तित्व को पोंछ डालना चाह रहे हैं। स्वभावतः, स्त्री उनको न पोंछने देगी। स्त्री पास पहुंचेगी तो उनका पुरुष होना प्रगट हो सकता है। उनके पुरुष होने को भोजन मिलता है। लेकिन जीसस जैसे उदास आदमी के पास भी, जीसस जैसे जिसके ओंठ पर बांसुरी नहीं है, उसके पास भी स्त्रियां इकट्ठी हो गईं। और जीसस की सूली पर से लाश जिन्होंने उतारी, वे पुरुष न थे, वे स्त्रियां थीं। उस युग की सर्वाधिक सुंदरी स्त्री मेरी मेग्दलीन, उसने उस लाश को उतारा। पुरुष तो भाग गए थे, स्त्रियां रुकी थीं। पुरुष तो जा चुके थे। पर स्त्रियां रुकी थीं। और जीसस ने स्त्रियों के लिए सम्मान का कभी एक वचन नहीं कहा।

महावीर कहते हैं कि स्त्रियां स्त्री-पर्याय से मोक्ष न जा सकेंगी। उन्हें एक बार पुरुष का जन्म लेना होगा, फिर वे मोक्ष जा सकती हैं। बुद्ध तो उनको दीक्षा ही देने से इनकार करते हैं कि हम दीक्षा ही न देंगे। और जब दीक्षा भी दे दी तब भी उन्होंने जो वचन कहे, वह बहुत ही हैरानी के हैं। बुद्ध ने कहा कि मेरा जो धर्म हजारों साल चलता, अब वह पांच सौ साल से ज्यादा नहीं चल पाएगा; क्योंकि स्त्रियां दीक्षित हो गईं हैं।

“इस कथन में सच्चाई तो थी!"

* सवाल यह नहीं है। सवाल यह नहीं है! बुद्ध की तरफ से कथन में सच्चाई थी। बुद्ध की तरफ से कथन में सच्चाई थी, क्योंकि बुद्ध का जो मार्ग है, उस मार्ग में, या महावीर का जो मार्ग है उस मार्ग में स्त्री के लिए उपाय नहीं है बहुत। लेकिन महावीर और बुद्ध बड़े आकर्षक हैं और स्त्री आ जाती है। सचाई उनके मार्ग के संदर्भ में है, सचाई “एब्सोलूट’ नहीं है। स्त्री के लिए कोई बाधा नहीं है मोक्ष जाने से–कोई बाधा नहीं है। लेकिन मार्ग अन्यथा होगा। महावीर वाले मार्ग से नहीं हो सकता। ऐसे ही जैसे कि दो रास्ते हों पहाड़ पर, एक सीधी चढ़ाई का गोल रास्ता हो और वहां एक तख्ती लगी हो कि स्त्रियां यहां से। बस इतना ही फर्क है। यह रास्ते के संदर्भ में सच है, महावीर के रास्ते के संदर्भ में यह बिलकुल सच है कि स्त्री जा नहीं सकती मोक्ष। अगर महावीर के मार्ग से ही जाने की किसी स्त्री की जिद्द हो तो उसे एक बार पुरुष के रूप में लौटना जरूरी है। क्योंकि सीधी चढ़ाई का रास्ता है। चढ़ाई के कई कारण हैं।

बड़ा कारण तो यह है कि न कोई परमात्मा है महावीर के रास्ते पर, न कोई संगी-साथी। न ही कोई है जिसके कंधे पर हाथ रखा जा सके। स्त्री का व्यक्तित्व अपने-आप में ऐसा है कि कोई झूठा कंधा भी मिल जाए तो भी ठीक है। उसको कंधे पर हाथ चाहिए। वह किसी के कंधे पर हाथ रखकर आश्वस्त हो जाती है। यह उसके व्यक्तित्व का ढंग है। इसमें कोई, और कोई कारण नहीं है। पुरुष किसी के कंधे पर हाथ रखे तो दीन अनुभव करता है अपने को। स्त्री किसी के कंधे पर हाथ रखे तो उसकी गरिमा बढ़ जाती है। स्त्री जब किसी के कंधे पर हाथ रख कर चलती है तब उसकी शान अलग है। जब वह अकेली चलती है तब दीन होती है। और पुरुष किसी के कंधे पर हाथ रखकर चलता है तो उसकी दीनता प्रगट होती है।

“गांधी जी भी तो दो स्त्रियों के कंधे पर हाथ रखकर चलते थे।’

इसकी पीछे बात करनी पड़ेगी। यह जो गांधी जी की बात उठाई है, वह भी एक क्षण में ले लेनी चाहिए। गांधी जी स्त्रियों के कंधे पर हाथ रखकर चले हैं, शायद इस भांति के वे पहले पुरुष हैं। कोई कभी किसी स्त्री के कंधे पर हाथ रखकर नहीं चला है।

“बूढ़े थे, इसलिए"’

नहीं, बूढ़े नहीं थे। बूढ़े नहीं थे तब भी वे रखते थे। गांधीजी का स्त्री के कंधे पर हाथ रखकर चलना किसी विशेष घोषणा के लिए है। इस मुल्क में, जहां सदा ही स्त्री ने पुरुष के कंधे पर हाथ रखा हो, जहां सदा ही स्त्री अद्र्धांगिनी रही हो–और नंबर दो की अद्र्धांगिनी, नंबर एक की कभी नहीं–जहां स्त्री सदा ही पीछे रही हो, आगे कभी नहीं; जहां स्त्री का होना ही “सेकेंड्री’ हो गया हो, द्वितीय कोटि का हो गया हो, वहां गांधी को लगता है कि किसी पुरुष को यह घोषणा करनी चाहिए कि स्त्री के कंधे भी इतने कमजोर नहीं, उस पर भी हाथ रखा जा सकता है। यह एक लंबी परंपरा के खिलाफ एक प्रयोग है, और कुछ भी नहीं, और कोई कारण नहीं है। हालांकि, गांधीजी स्त्रियों के कंधे पर हाथ रखे हुए बहुत सुंदर नहीं मालूम पड़ते हैं, और गांधीजी के हाथ के नीचे दबी हुई स्त्रियां भारी बोझ से ग्रसित होती मालूम होती हैं। असल में यह बिलकुल स्वभाव के प्रतिकूल किया जा रहा है। यह है नहीं ठीक। यह है नहीं ठीक। यह स्त्री और पुरुष के “बीइंग’ के संबंध में गांधी की समझ बहुत नहीं है। सिर्फ एक परंपरा का विरोध है, वह बात अलग है। एक व्यवस्था का विरोध है, वह बात अलग है। लेकिन स्त्री और पुरुष के व्यक्तित्व के संबंध में गांधी की समझ बहुत गहरी नहीं है।

इसलिए गांधी ने बहुत-सी स्त्रियों को करीब-करीब पुरुष बनाकर छोड़ दिया। और स्त्री जाति को फायदा हुआ है ऐसा मैं नहीं कहूंगा। स्त्री जाति को गहरा नुकसान हुआ है। क्योंकि स्त्री को पुरुष नहीं बनाया जा सकता। उसके स्त्री होने का अपना ढंग है। और उसके ढंग की खूबी ही यह है। और यह बड़े मजे की बात है कि न केवल स्त्री जब किसी के कंधे पर हाथ रखती है तो खुद गौरवान्वित होती है, उस पुरुष को भी गरिमा से भर देती है। ऐसा नहीं है, यह कुछ सिर्फ लेना ही नहीं है, उसमें देना भी है। यह सिर्फ कंधे का सहारा लेकर ऐसा नहीं है कि स्त्री को ही कुछ मिल जाता है, पुरुष को भी बहुत कुछ मिलता है। ऐसा पुरुष जिसके कंधे पर किसी स्त्री ने हाथ नहीं रखा, वह भी बहुत दीनता का अनुभव करता है।

यह जो महावीर, बुद्ध, जीसस, इन सारे लोगों के व्यक्ति में, जैविक व्यक्तित्व का निषेध इनकी साधना का हिस्सा है। कृष्ण के जीवन में समस्त की स्वीकृति साधना है। उसमें जैविक भी स्वीकार है, उसमें वह जो “सेक्सुअल बीइंग’ है वह भी स्वीकार है, वह जो काम-शरीर है, निषेध कुछ भी नहीं है। कृष्ण के हिसाब से तो जो निषेध करता है, वह किसी-न-किसी अर्थ में थोड़ा-न बहुत नास्तिक है। असल में निषेध करना ही नास्तिकता है। कितनी मात्रा में कोई करता है–कोई कहता है कि हम शरीर को स्वीकार नहीं करते हैं तो शरीर के प्रति नास्तिक हैं। कोई कहता है हम यौन को स्वीकार नहीं करते, तो यौन के प्रति नास्तिक हैं। कोई कहता है हम ईश्वर को स्वीकार नहीं करते, तो वह ईश्वर के प्रति नास्तिक है। लेकिन अस्वीकृति नास्तिकता का ढंग है। स्वीकृति आस्तिकता है। इसलिए न मैं महावीर को, न बुद्ध को, न जीसस को इतना आस्तिक कह सकता हूं जितना आस्तिक मैं कृष्ण को कहता हूं। समस्त स्वीकृति। निषेध है ही नहीं, निंदा है ही नहीं। जो भी है, उसकी अपनी जगह है अस्तित्व में।

इस वजह से कृष्ण के पास अगर लाखों स्त्रियां इकट्ठी हो सकीं, तो आकस्मिक नहीं है। और पास इकट्ठे होने का कारण न था। महावीर के पास इकट्ठे हों, तो भी एक “डिस्टेंस’, एक “फार्मल डिस्टेंस’ जरूरी है। महावीर के पास भी खड़े हों, तो एक शिष्टाचार का जितना फासला है उतना रखना पड़ेगा। महावीर के गले को स्त्री जाकर मिल जाए तो एकदम अशिष्टता हो जाएगी। न तो महावीर इसे बर्दाश्त करेंगे, न उस स्त्री को इससे कोई सुख और शांति मिलेगी, अपमान ही मिलेगा।

“महावीर किसलिए बर्दाश्त नहीं करेंगे?’

* महावीर इसलिए बर्दाश्त नहीं करेंगे कि महावीर उसे बिलकुल स्वीकार नहीं करेंगे, वह पत्थर की तरह खड़े रह जाएंगे। उनका पूरा अस्तित्व उसे इनकार करेगा। वह कहेंगे नहीं कि मत छुओ। मगर ऐसा लगेगा, कोई शिलाखंड ही हाथों में ले लिया। और स्त्री का अपमान इससे नहीं होता कि कोई कह दे कि मत छुओ, अपमान इससे होता है–वह किसी को छुए और दूसरी तरफ से कोई “रिस्पांस’ न हो, कोई उत्तर न हो। यह सवाल नहीं है। महावीर ऐसे हैं, इसमें कोई उपाय नहीं है। वह कोई स्त्री का अपमान करने जा रहे हैं, ऐसा नहीं है। यह उनका अपना होने का ढंग है। इसलिए स्त्रियां महावीर के आसपास, जिसको हम कहें एक औपचारिक फासला सदा कायम रखती हैं। उनके पास नहीं जाया जा सकता। उनके अस्तित्व का एक घेरा है जिसमें प्रवेश नहीं किया जा सकता।

लेकिन कृष्ण के साथ स्थिति बिलकुल और है। कृष्ण के साथ अगर कोई स्त्री कोई फासला रखना चाहेगी तो मुश्किल में पड़ जाएगी। वह अगर दूर खड़ी होगी तो पाएगी कि गिरती है पास। अगर कृष्ण के पास जाएगी तो पास आना ही पड़ेगा, जहां तक कि पास जाया जा सकता है। जहां कि आगे जाने का उपाय ही न हो, वह बात दूसरी है। लेकिन जहां तक पास जाया जा सकता है, कृष्ण के पास जाना ही पड़ेगा। जैसे कि कृष्ण पुकारते हुए हैं, एक निमंत्रण हैं। जैसे मैंने कहा कि महावीर एक शिलाखंड की तरह खड़े रह जाएंगे, कोई छुएगा भी तो पता चलेगा कि पत्थर है।

हेनरी थारो के संबंध में इमर्सन ने कहीं कहा है कि अगर हेनरी थारो से हाथ कोई मिलाए, तो ऐसा लगता है वृक्ष की सूखी शाखा को हाथ में ले लिया है। क्योंकि हेनरी थारो उत्तर नहीं देता, सिर्फ हाथ दे देता है। और हाथ बिलकुल मुर्दा होता है। उसमें कुछ नहीं होता, उसमें कोई गर्मी नहीं होती, उसमें कोई धारा नहीं होती। उसमें कुछ होता ही नहीं, सिर्फ हाथ होता है। हेनरी थारो की महावीर से दोस्ती बन सकती है।

कृष्ण के अगर कोई दूर भी खड़ा हो जाएगा तो ऐसा लगेगा, वह छू रहे हैं; वह स्पर्श कर रहे हैं, वह बुला रहे हैं। उनका पूरा अस्तित्व निमंत्रण है, आमंत्रण है। इस आमंत्रण को अगर हजारों स्त्रियों ने स्वीकार किया हो, तो आश्चर्य नहीं है। कोई आश्चर्य नहीं है। यह सहज हुआ।

रह गई बात यह कि हम पूछते हैं कि क्या कृष्ण के लिए संभोग जैसी बात संभव है? कृष्ण के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। हमारे लिए संभोग प्रश्न है, कृष्ण के लिए प्रश्न नहीं है। हम नहीं पूछते कि फूलों के लिए संभोग संभव है? हम नहीं पूछते, पक्षियों के लिए संभोग संभव है? हम नहीं पूछते कि सारा जगत संभोग की एक लीला में लीन है? यह सारा अस्तित्व संभोगरत है! आदमी पूछना शुरू करता है कि क्या कृष्ण के लिए संभोग संभव है? क्योंकि आदमी जैसा है, तनाव से भरा हुआ, जीवन के प्रति निंदा से भरा हुआ, उसके लिए संभोग जैसी गहन चीज भी संभव नहीं रह गई है। उसके लिए संभोग जैसा अस्तित्व का क्षण भी जटिल जाल बन गया है। वह भी सिद्धांतों की, दीवालों की ओट में खड़ा हो गया है।

संभोग का अर्थ ही क्या है? संभोग का अर्थ इतना ही है कि दो शरीर इतने निकट आ जाएं, जितने कि प्रकृति उन्हें निकट ला सकती है। और कोई अर्थ नहीं है। दो शरीर अपनी जैविक-निकटता में, “बायोलाजिकल इंटीमेसी’ में आ जाएं। उसके आगे प्रकृति का उपाय नहीं है। प्रकृति की आखिरी जो निकटता है, वह संभोग है। प्रकृति के तल पर जो निकटतम नाता है, वह संभोग है। उसके आगे प्रकृति का उपाय नहीं। उसके आगे फिर परमात्मा का ही क्षेत्र शुरू होता है। लेकिन कृष्ण प्रकृति की निकटता को स्वीकार करते हैं; वह कहते हैं, प्रकृति भी परमात्मा की है।

कृष्ण के लिए संभोग विचारणीय नहीं है, प्रश्न नहीं है, समस्या नहीं है, जीवन का एक तथ्य है। हमें बहुत कठिनाई होगी। हमने संभोग को एक समस्या बना दिया है, जीवन का तथ्य नहीं रखा। अभी हमने और चीजों को नहीं बनाया, हम और चीजों को भी कल बना सकते हैं। हम कह सकते हैं कल कि कृष्ण आंख खोलते हैं कि नहीं? अगर हम कभी एक सवाल उठा लें और सिद्धांत बना लें कि आंख खोलना पाप है, तो फिर यह भी हो जाएगा। फिर हम पूछेंगे कि उन्होंने आंख खोली है कि नहीं? अभी हम नहीं बनाएंगे यह सवाल। अभी हम सवाल उन्हीं चीजों को, जिनको हम सवाल बना लेते हैं, उनको हम पूछते हैं कि ऐसा करेंगे या नहीं?

मेरी अपनी समझ यह है, कृष्ण के जीवन में कोई मर्यादा नहीं है। यही उनका व्यक्तित्व है, यही उनकी विशेषता है। मर्यादा वे मानते ही नहीं। मर्यादा ही उनके लिए बंधन है और अमर्यादा ही उनके लिए मुक्ति है। लेकिन जो अर्थ हम लेते हैं अमर्यादा का, वह उनके लिए नहीं है। हमारे लिए अमर्यादा का अर्थ मर्यादा का उल्लंघन है। कृष्ण के लिए अमर्यादा का अर्थ मर्यादा की अनुपस्थिति है। इसको खयाल में ले लें, नहीं तो कठिनाई होती है। कृष्ण के लिए संभोग विचारणीय नहीं है, फलित होना है तो हो जाता है, हो सकता है। नहीं फलित होता है तो नहीं होना है, नहीं होता है। इसकी चिंतना से वह नहीं चलते हैं। इसको सोचकर नहीं चलते। हमारी बड़ी अजीब हालत है। हमने संभोग को मानसिक, “साइकोलाजिकल’ बना लिया है। हम संभोग को भी सोचते हैं। करते हैं तो सोचते हैं, नहीं करते हैं तो सोचते हैं। संभोग भी हमारा निर्णय बनकर चलता है। कृष्ण के लिए निर्णय नहीं है अगर किसी का प्रेम-क्षण इतने निकट आ जाए कि संभोग घटित हो जाए, “हैपनिंग’ हो जाए, तो कृष्ण “अवेलेबल’ हैं, कृष्ण उपलब्ध हैं। न घटित हो, तो कृष्ण आतुर नहीं हैं। न कृष्ण के मन में कोई विरोध है, न कोई प्रशंसा है। जो हो जाता है, उसमें सहज जीने की सिर्फ राजी, स्वीकृति, स्वीकार है।

मैं फिर दोहराऊं कि हमारे अर्थों में स्वीकार नहीं। क्योंकि हम स्वीकार भी अगर करते हैं तो अस्वीकार के खिलाफ करते हैं। कृष्ण के स्वीकार का मतलब है सिर्फ, कि अस्वीकार नहीं। इसलिए कृष्ण को समझना हमें सबसे ज्यादा जटिल है। महावीर को समझना आसान, बुद्ध को समझना आसान, जीसस को समझना आसान, मुहम्मद को समझना आसान, सारी पृथ्वी पर कृष्ण को समझना सर्वाधिक कठिन है। इसलिए सर्वाधिक अन्याय उनके साथ हो जाना सहज ही हो जाता है। हमारी सारी धारणाएं महावीर, बुद्ध, जीसस और मुहम्मद ने निर्मित की हैं। हमारी सारी धारणाओं का जगत, हमारे विचार, हमारे सिद्धांत, हमारे शुभ-अशुभ की व्याख्या महावीर, बुद्ध, जीसस, मुहम्मद, कन्फ्यूसियस, इनने तय की है। इसलिए इनको समझना हमें सदा आसान है, क्योंकि हम इनसे निर्मित हुए हैं। कृष्ण ने हमें निर्मित नहीं किया। असल में कृष्ण किसी को निर्मित ही नहीं करते, वह कहते हैं, जो है वह ठीक है। निर्माण का सवाल क्या है! तो जो निर्मित करते हैं उनसे हम निर्मित हुए हैं, कृष्ण ने तो किसी को निर्मित किया नहीं, इसलिए कृष्ण को समझना बहुत मुश्किल हो जाता है।

जब भी हम कृष्ण को समझते हैं, तो या तो महावीर का चश्मा हमारी आंख पर होगा, या बुद्ध का चश्मा होगा, या क्राइस्ट का होगा, या कन्फ्यूसियस का होगा, उससे हम कृष्ण को देखेंगे। और कृष्ण कहते हैं, तुम्हें अगर मुझे देखना है तो चश्मा उतार दो। बहुत मुश्किल है मामला! वह चश्मा नहीं उतारोगे तो कृष्ण में कुछ-न-कुछ गड़बड़ दिखाई पड़ेगी। वह आपके चश्मे की वजह से दिखाई पड़ेगी। लेकिन आप चश्मा उतारो, तो कृष्ण अत्यंत सहज पुरुष हैं–अत्यंत सहज पुरुष हैं।

पूछा जा सकता है कि इतनी सहज स्त्री क्यों पृथ्वी पर नहीं हो सकी? एकाध स्त्री तो होनी ही चाहिए थी न! कृष्ण को एकाध जवाब स्त्री को देना चाहिए था। कोई इतनी सहज स्त्री क्यों न हो सकी कि लाखों पुरुष उसके प्रति आकर्षित हों? क्या बात है? क्या कारण है? कुछ कारण हैं। इतना ही कारण नहीं है कि स्त्री दबाई गई। इतना ही कारण नहीं है कि पुरुष ने उसे स्वतंत्रता नहीं दी होने की। क्योंकि यह बात फिजूल है। इसका कोई अर्थ नहीं है। जितनी स्वतंत्रता जिसे चाहिए उतनी सदा मिल जाती है, अन्यथा वह जीने से इनकार कर देता है। नहीं, स्त्री कृष्ण का उत्तर नहीं दे पायी, शायद अभी और हजार दो हजार वर्ष लग जायेंगे, तब शायद स्त्री दे पाये। अभी नहीं दे पायी। अभी देना कठिन भी है। न देने का कारण है। स्त्री का सारा व्यक्तित्व, सारा ढंग, उसके होने की प्राकृतिक व्यवस्था “मोनोगेमस’ है, वह एक पर निर्भर रहना चाहती है।…

“क्लियोपेत्रा जैसी?"

* नहीं, बात करता हूं। …वह एक पर निर्भर रहना चाहती है। उसका चित्त “मोनोगेमस’ है, अब तक, कल भी रहेगा ऐसा जरूरी नहीं है। पुरुष “पोलीगेमस’ है। वह एक उसे कभी भी सुख नहीं दे पाता। पुरुष एक से ऊब जाता है। स्त्री एक से बिलकुल नहीं ऊबती। स्त्री एक के साथ जन्म-जन्म जीने की कामना करती है। एक के साथ फिर दुबारा भी जन्म मिले तो उसी के साथ मिले, वैसी कामना करती है।

यह जो एक-स्त्री-पुरुष का संबंध है, यह पुरुष ने कम तय किया है, यह स्त्री ने ज्यादा तय करवा लिया है। यह पुरुष की वजह से नहीं है, एकपत्नीव्रत, या एक पतिव्रत, यह स्त्री की वजह से है। इसके अब तक “बायोलाजिकल’ कारण भी थे, जैविक कारण भी थे। क्योंकि स्त्री को निर्भर होना है–बहुतों पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता है। इसको खयाल में लेना जरूरी है। स्त्री को कंधे पर हाथ रखना है। बहुत कंधों पर हाथ नहीं रखे जा सकते। निर्भर होना जिसका सुख है, वह बहुतों पर निर्भर होगी तो अनिश्चितमना हो जाएगी, निर्भरता उसकी “इनडिसीसिव’ हो जाएगी, उसमें निर्णय नहीं रह जाएगा। जिसे निर्भर होना है–जैसे एक बेल है, उसे एक वृक्ष पर निर्भर होना है, वह बहुत वृक्षों पर एक-साथ नहीं चढ़ सकती। उसे एक वृक्ष पर ही चढ़ना होगा। लेकिन एक वृक्ष बहुत-सी बेलों को आमंत्रित कर सकता है। और एक वृक्ष पर जितनी बेलें चढ़ जाएं उतनी उसे तृप्ति होगी, क्योंकि उतना ही वह वृक्ष मालूम होने लगेगा। एक पुरुष बहुत-सी स्त्रियों को, हाथों को निमंत्रित कर सकता है कि मेरे कंधे पर रखो, क्योंकि उतना ही उसके पुरुष होने की गहरी रस की स्थिति उसे उपलब्ध होगी।

मगर स्त्री एक पर निर्भर होना चाहेगी। इस एक पर निर्भर होने का कारण चित्त में तो है ही, बहुत ज्यादा “बायोलाजिकल’, शारीरिक कारण है, जैविक कारण है। उसके बच्चे होंगे। उन बच्चों के लिए कोई निर्धारक, कोई नियंता, कोई फिक्र करने वाला होना चाहिए। नौ महीने वह असमर्थ होगी। उसके बाद उसके बच्चे के सम्हाले में उसे सारा वक्त लगाना पड़ेगा। अगर वह बहुतों पर निर्भर है, तो इसमें अनिश्चय पैदा होगी और कठिनाई होगी। इसलिए मैंने कहा कि हजार-दो हजार साल लग जाएंगे, क्योंकि बहुत जल्दी स्त्रियां इनकार कर देंगी वैज्ञानिक विकास के साथ बच्चों को पेट में सम्हालने से। वे तो प्रयोगशालाओं में सम्हाले जाएंगे। जिस दिन स्त्री बच्चे को पेट में रखने से मुक्त हो जाएगी, उस दिन स्त्री भी कृष्ण जैसा व्यक्ति पैदा कर सकती है, उसके पहले नहीं पैदा कर सकती। उसके कारण थे।

यह जो मैंने कृष्ण के सहज होने की बात कही, इसे मनुष्यता जितने गहरे में समझ पाए उतने ही चिंताओं और तनावों और संतापों से मुक्त हो सकती है। आदमी के अधिक तनाव आदमी के अपने ही स्वभाव से संघर्ष के परिणाम हैं। आदमी की अधिक चिंताएं अपने से ही लड़ने की चिंताएं हैं। और मजा यह है कि हम अपने से लड़ सकते हैं, लेकिन जीत नहीं पाते–जीत नहीं सकते। हार ही होती है–हार ही होती है। कभी-कभी कोई जीत जाता है। बड़ी अनूठी वह घटना है, कभी-कभी कोई जीत पाता है। उस कभी-कभी कोई जीतने वाले के अनुसरण में लाखों लोग अपने से लड़ते चले जाते हैं। और ये लाखों लोग सिर्फ चिंतित होते हैं, असफल होते हैं; हारते हैं और परेशान होते हैं।

मेरी अपनी दृष्टि ऐसी है कि महावीर के मार्ग से कभी कोई एकाध आदमी उपलब्ध हो सकता है। लेकिन महावीर के मार्ग पर सौ में से निन्यानबे आदमी चलते हैं। कृष्ण के मार्ग से निन्यानबे आदमी उपलब्ध हो सकते हैं, लेकिन कृष्ण के मार्ग से एकाध आदमी भी नहीं चलता है। महावीर का मार्ग पगडंडी का है, मैंने का। बुद्ध का भी। जीसस का भी। इनके मार्ग बहुत संकरे हैं, बहुत “नैरो’ हैं। और बड़े दुरूह हैं, क्योंकि व्यक्ति को अपने से ही लड़कर गुजरना है। कभी-कभी कोई सफलता उपलब्ध होती है।

कृष्ण का मार्ग राजपथ की तरह है। उस पर बहुत लोग जा सकते हैं। लेकिन, उस पर बहुत कम लोग जाएंगे, बहुत कम लोग जाते हैं। क्योंकि सहज होने की क्षमता ही जैसे आदमी खोता चला गया। असहज होना ही सहज हो गया है। रुग्ण होना ही हमारा स्वास्थ्य हो गया है और स्वस्थ होने की धारणा ही भूल गई है। पुनर्विचार की जरूरत है मनुष्य पर। लेकिन मैं मानता हूं कि पुनर्विचार पैदा हो रहा है। फ्रॉयड के बाद अब भविष्य में कृष्ण रोज-रोज सार्थक होते चले जाएंगे। क्योंकि फ्रॉयड के बाद पहली बार मनुष्य के चित्त की सहजता को स्वीकृति मिलने की भूमिका बन रही है। जैसा मनुष्य है, उस मनुष्य को ही विकसित करना है। अब तक जैसा मनुष्य होना चाहिए, उसको हमने पैदा करने की कोशिश की थी। अब तक आदर्श कीमती था और मनुष्य को उस आदर्श तक पहुंचना ही था जरूरी। अब फ्रॉयड के बाद एक रूपांतरण पूरी दुनिया के जिसको हम कहें बौद्धिक जगत में एक ऊहापोह शुरू हुआ है, वह यह कि हम आदमी को पहुंचाने की सारी कोशिश करके भी पहुंचा नहीं पाए। कभी-कभी कोई एकाध आदमी पहुंच जाता है, उससे कोई हल नहीं होता। वह नियम नहीं है, सिर्फ अपवाद है। और अपवाद सिर्फ नियम को सिद्ध करते हैं और कुछ नहीं करते। वह सिर्फ इतना सिद्ध करते हैं कि सब न पहुंच सकेंगे। फ्रॉयड के बाद पहली दफा “आनेस्ट थिंकिंग’, ईमानदार चिंतन शुरू हुआ है। वह ईमानदार चिंतन यह कह रहा है कि आदमी क्या है, उसको हम समझने चलें।

अब एक पत्नी है, उसकी आकांक्षा है कि उसका पति कभी किसी दूसरी स्त्री को देखकर प्रसन्न न हो। यह आकांक्षा पुरुष के स्वभाव के बिलकुल अनुकूल है। इस आकांक्षा का एक ही परिणाम हो सकता है। अगर पुरुष की आकांक्षा से नीति और नियम निर्धारित किए जाएं तो स्त्री दुखी और पीड़ित हो जाएगी। अगर स्त्री की आकांक्षा से नीति और नियम निर्धारित किए जाएं तो पुरुष दुखी हो जाएगा। और मजा यह है कि दो में से एक दुखी हो जाए तो दूसरा सुखी नहीं हो सकता। उसका कोई उपाय नहीं रह जाता। लेकिन अब तक यही हुआ है।

 

क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि हम पुरुष और स्त्री दोनों के स्वभाव को समझने की दोनों कोशिश करें? और जब पुरुष किसी स्त्री को देखकर प्रसन्न हो तो पत्नी इससे पीड़ित न हो जाए, और जाने कि यह पुरुष का स्वभाव है। और जब उसकी स्त्री उदास और परेशान दिखाई पड़े तो उसका पति उस पर टूट न पड़े, जाने कि यह स्त्री का स्वभाव है। अगर हम एक संतापहीन, तनावमुक्त जगत पैदा करना चाहते हों, तो हमें व्यक्तियों के स्वभाव को समझने की कोशिश करनी चाहिए। और स्वभाव क्यों है, उसकी जड़ों में जाना चाहिए। और अगर स्वभाव बदलना हो तो जड़ें बदलनी चाहिए, स्वभाव को बदलने की ऊपर से नैतिक चेष्टा नहीं करनी चाहिए। स्त्री तब तकर् ईष्यालु रहेगी, जब तक आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं है। तब तकर् ईष्यालु रहेगी, जब तक बच्चे का बोझ अकेले उस पर पड़ जाता है। तब तकर् ईष्यालु रहेगी, जब तक उसका होना द्वितीय कोटि की जगह, पुरुष के बराबर आर्थिक स्वावलंबन, पुरुष के बराबर उसकी जैविक मजबूरी से मुक्ति, तो हम स्त्री कोर् ईष्या से तत्काल मुक्त कर सकेंगे। और स्त्री उसी तरह दूसरे पुरुषों में भी रस लेने को आतुर हो जाएगी जैसा पुरुष सदा से रहा है। लेकिन यह अभी तक नहीं हो सका। यह अब हो सकता है। मनुष्य के बाबत हमारी समझ गहरी हुई है।

पुरानी हमारी सारी व्यवस्था मनुष्य की समझ पर निर्भर नहीं थी, बल्कि मनुष्य की जरूरतों पर निर्भर थी। मनुष्य के समाज में क्या जरूरी है, वह हमने नियम बनाए थे। मनुष्य के स्वभाव के लिए क्या जरूरी है, वह हमने नियम नहीं बनाए थे। लेकिन फ्रॉयड के बाद एक क्रांति घटित हुई है। और मैं मानता हूं, फ्रॉयड द्वार बनेगा कृष्ण की वापसी का। कृष्ण वापस लौटेंगे–वह फ्रॉयड के द्वार से लौटेंगे। फ्रॉयड ने बड़ा प्राथमिक काम किया है। अभी बहुत काम उस दिशा में होना जरूरी है। फ्रॉयड और कृष्ण के आने वाले भविष्य में निरंतर अधिक लोगों को कृष्ण के जीवन से रोशनी मिलने की संभावना बढ़ती जाने वाली है। उसकी सहजता धीरे-धीरे हमारे अनुकूल और प्रीतिकर होती जाने वाली है।

और जिस दिन यह हो सकेगा मेरा अपना मानना है कि महावीर, बुद्ध, जीसस, कन्फ्यूसियस को मानकर हम एक स्वस्थ दुनिया पैदा नहीं कर सके। एक प्रयोग जरूर किया जाने जैसा है कि कृष्ण की तरह देखकर हम दुनिया को एक व्यवस्था दे पाएं। और मेरी अपनी समझ है कि जो दुनिया हमने अब तक पैदा की है, उससे वह दुनिया बेहतर हो सकेगी। क्योंकि अब तक जो दुनिया हमने पैदा की है वह अपवाद को नियम मानकर की है, अब हम नियम को ही नियम मानकर करेंगे।

कृष्ण स्मृति 

ओशो