Saturday, 24 August 2019

Man is an actor

मनुष्य मात्र ही महानाट्य का अभिनेता
    
           तारक ब्रह्म का संकल्प हुआ - वे जीव को मुक्ति देंगे । तब मुक्ति केवल वही पाता है जो मुक्ति चाहता है । मुक्ति चाहने पर या मुक्ति कामना करने पर मनुष्य को सद्गुरु - प्राप्ति होती है । तब बात यह हुईं कि - कोई मुक्ति चाहता है , कोई या तो नहीं चाहता है । कोई मुक्ति चाहने पर भी नहीं पाता है । फिर कोई नहीं चाहने पर पा जाता है । यह किस प्रकार की बात हुई ? कोई - कोई कहता है -' मांगना मरण समान है मत मांगो कोई ' । फिर यह भी कहते है ' - ' बिना मांगे मोती मिले , मांगे मिले न भीख ' । यह तो अद्भुत बात है , रहस्यमय बात है और यह जो रहस्यमय है यही हुआ तारक ब्रह्म का नाटक ।
           जीव नाटक का एक चरित्र है । मनुष्य इस पृथ्वी पर आया है । उसके लिए एक निर्दिष्ट भूमिका है ,और उसी भूमिका को ठीक - ठीक ढंग से पालन करना होगा । इस बात को ही सब समय स्मरण रखना होगा कि मैं उसी दैवी नाटक का एक चरित्र हूँ । इस नाटक का नाट्यकार या रचयिता कौन है ? हाँ , वे तारकब्रह्म हैं ।
            इस प्रसंग में पुराने एक किस्से की याद आ जाती है । लड़ाई के बाद कुरुक्षेत्र एक विराट श्मशान भूमि में परिणत हो गया था । अब युद्ध के अंत में एक दिन कौरव पक्ष के लोग वहां पर आये । उनमें कुछ महिलाएं तथा दो - चार वृद्ध पुरुष भी थे । फिर , पांडव पक्ष से भी कुछ लोग आये थे । उनमें कुंती और कौरव , जननी गांधारी भी थी । फिर उस पक्ष के अंध धृतराष्ट्र भी आये ।
             उस श्मशान भूमि में आकर सभी रो रहे थे । कौरव भी रो रहे थे ,  फिर इतना ही नहीं गांधारी भी रो रही थी । कारण , इस युद्ध में उन्होंने अपने प्रिय शत पुत्रों को खोया था । कृष्ण गंधारी के समीप आकर कुछ बोले , ' माँ , आप रो क्यों रही हैं । मृत्यु तो जगत का एक स्वाभाविक नियम है । ' जातस्य हि ध्रुवोर्मृत्यु :' । जिसका जन्म हुआ है मृत्यु तो उसकी होगी ही । इसलिए इसमें रोने की कौन सी बात है ।
             गंधारी ने कहा , " हाँ , कृष्ण , तुम आज जिस बात को कह रहे हो , मैं भी मृत्यु वियोग से कातर दूसरों को ठीक इसी बात को ही कहती हूँ । ठीक यही कहकर सांत्वना देती थी । इस बात को तुम भी जानते हो , मैं भी जानती हूँ । इसलिए इस बात को कहने की क्या आवश्यकता है ?" उन्होंने कहा , - " कृष्ण आज तुम हम लोगों के शोक में सांत्वना देंने के लिए यहां आये हो । किन्तु मैं तुमसे पूछती हूँ , इतने बड़े कांड के पीछे किसकी बुद्धि काम कर रही थी , कौन इस विराट परिकल्पना का रचयिता है ? तुम्हीं न वह ब्यक्ति हो ?"
            कृष्ण ने उत्तर में कहा - " जिन्होंने अन्याय किया , जिसने पाप किया , उनको दण्ड मिला । इसमें मैं क्या कर सकता हूँ ?" गांधारी ने पुनः कहा - " अभी तक जो घटा है वह सभी ही ठीक है ।कारण , क्रिया की प्रतिक्रिया तो होगी ही । किन्तु मेरी बात है , तुम स्वयं तारक ब्रह्म हो , तुम्हारा काम जीव को मुक्ति देना है । तुम जिसे चाहो मुक्ति दे सकते हो । तारक ब्रह्म के रूप में चाहने पर सृष्टि भी कर सकते हो , ध्वंस भी कर सकते हो । अपने द्वारा रचित नाटक में तुम ऐसे कई एक चरित की रचना करते हो जो खूब ही साधु ब्यष्टि हैं , आदर्श चरित्र हैं । सतकर्म करने पर मुक्ति लाभ होता है - यह दूसरों को शिक्षा देने के लिये  इस प्रकार के चरित्र की रचना करते रहते हो । कुरुक्षेत्र में यह जो इतना बड़ा महायुद्ध हो गया , इस नाटक को तुम इच्छा करने से मेरे शत पुत्रों को साधु की भूमिका में तथा पांडवों को असाधु की भूमिका में अवतीर्ण करा सकते थे ; उससे मेरे शत पुत्रों को मोक्षलाभ और पांडवों का नरक वास हो सकता था । तुम तारक ब्रह्म हो , तुम्हीं तो सब कुछ के रचयिता हो , और अब मुझे रुलाकर बाद में सांत्वना देने आये हो ?"
           बात तो ठीक ही है , तारक ब्रह्म अपनी परिकल्पना की रचना करते हैं इतिहास सृष्टि के लिए , लोक शिक्षा के लिए । सतकर्म करने पर सदगति होती है और असत् कर्म करने पर असत गति होती है । इस महान शिक्षा को वे मानव मन में पिरो देना चाहते हैं ।
          अतः पर गल्प का दूसरा अंश है , गांधारी अभिशाप देकर कहती हैं - " कृष्ण मैं तुम्हें अभिशाप दूँगी "। कृष्ण ने कहा - " अभिशाप दें , मैं तुम्हें अनुमति देता हूँ " ।
             गांधारी तब यह अभिशाप देते हुए बोली - " कृष्ण , तेरी आँखों के सामने तुम्हारा यदुवंश ध्वंस होवे ।" कृष्ण ने केवल कहा - ' तथास्तु ' ।
            मनुष्य को सदा इस बात को याद रखना होगा तारक ब्रह्म रचित इस विराट विश्वनाट्य में जीव मात्र ही एक एक चरित्र है । उतना ही उसका असली परिचय नहीं है । नाटक में जिस तरह कोई राजा की भूमिका में अभिनय करता है किन्तु वही आदमी घर में हो सकता है , दो मूठी भात भी न पाता हो । कोई नाटक में गरीब प्रजा की भूमिका करता हो , किन्तु वास्तव में हो सकता है वह एक बड़ा धनी ब्यक्ति हो ।
              स्मरण रखना होगा - " हम लोग एक विशेष नाट्य की भूमिका में अभिनय कर रहे हैं , केवल नाट्य में हमें जिस तरह का अभिनय करने को कहा गया है , उसी तरह ठीक अभिनय करते जाएंगे , वही मनुष्य का कर्तव्य है । मनुष्य के लिए इससे अधिक सोचना अर्थहीन है , उसकी क्षमता के बाहर भी है ।

।।  सद्गुरु श्री श्री आनन्दमूर्ति जी  ।।

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