Saturday, 24 August 2019

Sri Krishna made Mahabharata

जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में भगवान श्रीकृष्ण पर विशेष !

" महाभारत " के प्रधान नायक 

        " टुकड़े  - टुकड़े में बिखरे भारत को श्रीकृष्ण ने महाभारत बनया ,इसकी परिकल्पना यदि किसी ने की थी तो वे थे - महर्षि गर्ग ।पांडवों और कौरवों के बीच का युद्ध महाभारत नहीं है । " महाभारत " है परस्पर विवाद में ,लड़ाइयों में उलझे छोटे -
छीटे राज्यों , छोटी-छोटी जातियों ,छोटे-छोटे सम्प्रदायों को एक आदर्श में गूँथकर
भारत को महाभारत में गूँथकर भारत को महाभारत के रूप में प्रतिष्ठित करने की
कथा "।
       मैं पहले ही बोल चूका हूँ की तत्कालीन भारतवर्ष छोटे -छोटे अनेक राज्यों में विभक्त था ।इनके प्रधान या राजा प्रायः पड़ोसी राज्य पर ,अपने राज्य की सीमा विस्तार के लिए तथा उस राज्य से टैक्स प्राप्त करने के लिए आक्रमण कर लड़ाई ठान देते थे ।अंग ,बंग ,कलिंग ,विदेह ,काशी आदि अनेक राज्य थे और आपस में सबसे ठनती रहती थी ।अंग ( भागलपुर और मुंगेर ),मगध ( गया और पटना ) पड़ोसी राज्य थे गंगा के दक्षिण और गंगा के उत्तर वैशाली ।शोण नद (वर्तमान सोन नदी ) के पश्चिम था काशी राज्य ।ये सब आपस में खोज-खोज कर लड़ते रहते थे ।
        मगध और अंग के बीच में बहुत बड़ा ,बहुत उपजाऊ ,लम्बा-चौड़ा भूखण्ड था
(आज भी है ) ।रबी की फसल वहां खूब होती थी ।यह क्षेत्र वर्षा के दिनों में समूचा पानी में डूब जाता था । पानी में डूबा रहने के कारण इस भूखण्ड को अम्बभूमि कहते थे ।जम्बूद्वीप के समान ही हुआ यह दूसरा नाम अम्बभूमि ।यहां रहने वाले अम्बस्थ या
अम्बष्ठ कहे जाने लगे ।यह भूमि थी सोने की चिड़िया ।अतः इसके लिए अंग , बंग ,
मगध और वैशाली के बीच बराबर लड़ाइयां होती ही रहती थी , कभी -कभी काशी भी धावा कर देता था ।कभी यह अंग के कब्जे में तो कभी मगध के और कभी वैशाली या विदेह उस पर अपन पंजा जमा लेता ,जिसकी लाठी उसकी भैंस ।
       उस समय अनेक जातियां थी ,परन्तु कोई सुदृढ़ सामाजिक संगठन नहीं था और
सामूहिकता का नितांत अभाव था ।ब्यक्तिगत जीवन में लोग सदाशिव को आदर्श मानते थे ।सदाशिव के द्वारा प्रवर्तित स्थापत्य कला , शिल्प नृत्य ,संगीत ,साहित्य आदि ललित कलाओं के सिद्धांत ही आदर्श थे ।सदाशिव के प्रति सब जातियों में अटूट श्रद्धा रहने पर भी सब में एकनिष्ठ सामाजिक आदर्श के आभाव के कारण सामाजिक दृष्टिभंगी नहीं थी ।अतः मंगोल ,द्राविड़ ,नीग्रो ,ऑस्ट्रिक इत्यादि जातियों की अपनी जातिगत
स्वतन्त्रता बनी रही ।उन सब में मिलजुल कर वृहत्तर सामाजिक ,आर्थिक ,राजनैतिक
क्षेत्र में धर्म का का संचार नही हो  पाया था। धर्म ही तो ब्यक्ति-ब्यक्ति को समाज रूप में धारण करता है - धर्मो धारयते प्रजा: ।सामाजिक धर्माभव के आभाव में राजनैतिक रूप से आपस में लड़ते-झगड़ते , छोटे -छोटे राज्यों में बंटा हुआ था और सामाजिक रूप में भी जातियों ,उपजातियों में बिखरा हुआ था ।ऐसे विच्छिन्न भारत को एक
" महाभारत " के रूप में समुन्नत करने का प्रथम आयोजन किया था श्रीकृष्ण ने ।
श्रीकृष्ण भारत की इस अवस्था का कारण जानते थे ।वे देख रहे थे जनसाधारण ब्यक्ति
चाहे जैसा भी हो किन्तु उसमें सामूहिक भाव बिलकुल नही बन पाया है ।श्रीकृष्ण ने इस हेतु सामूहिक भाव भरकर सामाजिक एकता जगाई जिससे भारत महाभारत बनता।
        बिखरी हुई जातियों में परस्पर विश्वास उतपन्न कर उन्हें निकट सम्पर्क सूत्र में बांधने के लिए श्रीकृश्ण ने अन्तर्जातीय विवाह की प्रेरणा दी ।इसमें वे स्वयं आगे बढ़े और पांडवों को प्रेरित किया। पांडव वर्तमान मेरठ-हरियाणा के थे ।जाति की दृष्टि से वे ऑस्ट्रिक -आर्य थे ,जिनकी सन्तान आज के जाट हैं ।ये भारत के प्रथम अधिवासी हैं ।
उत्तर प्रदेश का पश्चिमी इलाका मेरठ के पास का स्थान और पंजाब का पूर्वी भाग अर्थात वर्तमान हरियाणा उनका वास स्थान था ।पश्चिम भूभाग के निवासी इन पांडवों का सम्पर्क सूत्र श्रीकृष्ण की प्रेरणा से भारत के सुदूर प्रांतों तक फैल गया ।भीम का
विवाह हिडिम्बा से हुआ ।वह नागालैंड की मंगोल कन्या थी ।अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा
मणिपुर की थीं ।वह भी मंगोल जाति की थीं ।श्रीकृष्ण ने स्वयं नेफा की रुक्मिणी से विवाह किया था ।इस प्रकार श्रीकृष्ण ने समस्त उत्तरापथ को पारिवारिक सम्बन्ध-सूत्र में बांधकर जातिगत एकता की स्थापना में सफलता पाई ।उनके प्रयास से इन छोटी बड़ी जातियों को मिलाकर एक भारतीय जाति का रूप खड़ा हो सका , जिसमें सब जातियां समा गयीं ।
        उस युग में जनसाधारण ने सदाशिव का आधिपत्य या प्रधानता स्वीकार कर ली थी ,परन्तु उस समय अनेक अनुष्ठानमूलक विधियों का ही प्रचलन था ।धर्मसाधना नाम की कोई चीज नहीं थी ।धर्म के नाम पर अनेक विधियां प्रचलित थीं ।बड़े-बड़े ऋषि -
मुनि थे । महर्षि गर्ग के समान वैष्णव भी थे ,मामा कंस के समान शाक्त भी थे ।इनके
अतिरिक्त कौल साधकों का भी वर्ग था ।इन सब वर्गों की विशेषता यह थी कि राजा हो या प्रजा ,सब पर साम्प्रदायिक दृष्टि का प्रभाव था ।
       ऊपर कंस का प्रसंग आया है ।वे शूरसेन देश के राजा थे ।कृष्ण के मामा थे और कट्टर शाक्त ।इतना ही नहीं , अपने युग के अत्यंत निष्ठुर- नृशंस -अत्याचारी रूप में ही
उन्हें आज भी माना जाता है ।थे भी वैसे ही ।इनके कुकृत्यों से जन-जन को त्राण दिलाने के लिए महर्षि गर्ग को इनके विरुद्ध षडयंत्र करना पड़ा था । कंस ने शूरसेन
प्रदेश में गर्ग का प्रवेश निषिद्ध कर दिया था ।गुप्त रूप से महर्षि गर्ग की हत्या  के लिए
विष कन्या नियुक्त की थी ,पर प्रकट रूप से उनके सम्मान का पूरा आयोजन करता था ।जैसे कंस गर्ग के विरुद्ध षड़यंत्र कर रहा था वैसे ही गर्ग ने भी कांटा से कांटा निकालने का षड़यंत्र किया ।कंस तो मूँछों पर ताव देता रहा और गर्ग ने कृष्ण को मामा के विरुद्ध
ला खड़ा किया ,जिसने कंस का काँटा उखाड़ फेंका ।कृष्ण माता-पिता के साथ जेल में थे ।उन्हें बाहर निकलने का षड़यंत्र किया था ।महर्षि गर्ग थे नन्द और वसुदेव के चचेरे भाई ।नन्द और उपानन्द के जेठ थे ।ये जाति में विप्र थे ,वैष्णव विप्र ,ध्यान-धारणा ,
साधन-भजन करने वाले रमता- राम ।उस युग में जाति भेद या वर्ण ब्यवस्था वैसी कठोर नहीं थी ।वैदिक युग के समान नाम मात्र की ही थी ।वर्ण ब्यवस्था बाद में कठोर हुई ।कृष्ण के पिता थे सेनापति ।अतः क्षत्रिय वृत्ति अपनाने के कारण क्षत्रिय थे ।कृष्ण के दूसरे अभिवावक नन्द-उपानन्द गोप थे -यादव अर्थात वैश्य ।इस तरह महर्षि गर्ग
विप्र , वसुदेव क्षत्रिय और नन्द वैश्य ।तीनो तीन जाति के जाने जाते थे ।यह तत्कालीन वर्ण ब्यवस्था का अच्छा उदाहरण है ।जेल में वसुदेव असमर्थ थे ।रमताराम गर्ग ने कृष्ण को जेल से निकलने की ब्यवस्था की और समय आने पर कृष्ण ने कंस का संहार
कर अपने माता-पिता को मुक्त किया।महर्षि गर्ग ने ध्यानावस्था में कृष्ण के बारे में जाना , उनके लोकोत्तर पुरुषोत्तम स्वरूप का आभास पाया था ।अतः कृष्ण को जेल से निकाला ।कृष्ण नाम भी गर्ग ने ही रखा ।
     कृष्ण ने तत्कालीन सामाजिक ,राजनीतिक ,आर्थिक क्षेत्रों में जो कुछ क्रान्ति की ,
टुकड़े-टुकड़े में बिखरे भारत को एक महाभारत बनाया , इसकी परिकल्पना यदि किसी ने की थी तो वे थे -महर्षि गर्ग ।पांडवों और कौरवों के बीच का युद्ध महाभारत नहीं है।
महाभारत है परस्पर विवाद में , लड़ाइयों में उलझे छोटे-छोटे राज्यों , छोटे-छोटे सम्प्रदायों को एक बड़े आदर्श में गूँथकर भारत को महाभारत के रूप में प्रतिष्ठित करने की कथा ।इसके नायक न युधिष्ठिर हैं और न दुर्योधन । महाभारत के नायक हैं -
भगवान श्रीकृष्ण ।
।।  सदगुरु श्री श्री आनन्दमूर्ति जी  ।।

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