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*पुण्य -- जिसका स्वरूप विद्यादि शुभ गुणों का दान और सत्यभाषणादि सत्याचार का करना है,उसको "पुण्य" कहते हैं ।*
*पुण्य -- जिसका स्वरूप विद्यादि शुभ गुणों का दान और सत्यभाषणादि सत्याचार का करना है,उसको "पुण्य" कहते हैं ।*
*पाप-- जो पुण्य से उल्टा और मिथ्याभाषणादि करना है ,उसको "पाप" कहते हैं ।*
*सत्यभाषण--जैसा कुछ अपने आत्मा में हो और असम्भवादि दोषों से रहित करके सदा वैसा ही सत्य बोले ,उसको "सत्यभाषण " कहते हैं ।*
*मिथ्याभाषण --जो कि सत्यभाषण अर्थात् सत्य बोलने से विरुद्ध है,उसको असत्यभाषण कहते हैं |*
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