Saturday, 24 August 2019

Krishna priya Mira

मीरा का प्रीतम

प्रश्न: आपने कहा कि गीता के कृष्ण से मीरा का कोई संबंध नहीं है।
लेकिन मीरा तो कहती है कि मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई। तो यह गिरधर गोपाल कौन है? स्पष्ट करने की कृपा करें।

गिरधर गोपाल का गीता में कहीं भी उल्लेख है?
कृष्ण पूर्ण अवतार हैं। कृष्ण के बहुत रूप हैं। कृष्ण उतने रूपों में प्रकट हुए हैं जितने रूप हो सकते हैं। गीता का कृष्ण तो सिर्फ एक ही रूप है कृष्ण का। शंकराचार्य उस रूप के प्रेम में हैं, श्री अरविंद उस रूप के प्रेम में हैं, लोकमान्य तिलक उस रूप के प्रेम में हैं।

गीता पर हजारों टीकाएं लिखी गई हैं। कृष्ण उसमें समाप्त नहीं हैं। वह कृष्ण की एक तरंग है। वह एक दृश्य है कृष्ण के जीवन का। उस दृश्य को पूरा कृष्ण मत समझ लेना, अन्यथा भूल हो जाती है। कृष्ण उससे बहुत ज्यादा हैं।
इसलिए तो मीरा कहती है: मेरे तो गिरधर गोपाल! यह गिरधर गोपाल कृष्ण का दूसरा रूप है, जिसने पर्वत को हाथ पर उठा लिया था। ये श्रीमद्भागवत के कृष्ण हैं। ये कृष्ण हैं, जिन्होंने मटकियों से माखन चुराया। ये कृष्ण हैं, जिन्होंने गोपियों की मटकियों पर कंकड़ मार कर मटकियां तोड़ीं। ये कृष्ण हैं, जिन्होंने रास रचाया यमुना के तट पर। ये कृष्ण हैं, जो नाचे; जिनके हाथ में बांसुरी है; जिनके सिर पर मोरमुकुट है; जो पीतांबर ओढ़े हुए हैं। ये कृष्ण की सौंदर्य—प्रतिमा, ये कृष्ण का शृंगार रूप! ये कृष्ण मनमोहन हैं!

तो तुम गलत मत समझ लेना। मैंने यह नहीं कहा कि मीरा किसी और कृष्ण के प्रेम में है। मैंने सिर्फ इतना कहा कि गीता के कृष्ण के प्रेम में मीरा नहीं है। नहीं तो गीता पर व्याख्या करती। कृष्ण को मीरा ने ऐसे देखा जैसे राधा ने देखा होगा, जैसे और सखियों ने देखा होगा। युद्ध के मैदान पर खड़े कृष्ण नहीं—ब्रज की कुंज गलिन में रास रचाते, बंसी वट में बांसुरी बजाते, गाएं चराते! कृष्ण का यह जो मनमोहक रूप है, कृष्ण का यह जो प्रीतम रूप है—मीरा इस रूप के प्रेम में है।

और ध्यान रखना: कृष्ण इतने विराट हैं कि तुम अपनी मनपसंद का कृष्ण चुन सकते हो। सूरदास ने कोई तीसरा ही कृष्ण चुना है। वह छोटा सा बालक कृष्ण, पैर में गुनगुनियां बांधे, नंग—धड़ंग, यशोदा को परेशान कर रहा है। सूरदास ने बालक कृष्ण को चुना है। सूरदास के लिए बालकृष्ण काफी हैं। वह छोटे से कृष्ण की लीला, बाललीला! वह सूरदास को भा गई है। सूरदास का प्रेम कृष्ण के प्रति वात्सल्य का प्रेम है। छोटे बच्चे के प्रति। छोटे बच्चे की लीलाएं, खेलों के प्रति। छोटे बच्चे के मचलने के प्रति। सूरदास वात्सल्य से कृष्ण को देखे।

मीरा का कृष्ण मीरा का पति है। मीरा का कृष्ण मीरा का प्यारा है, प्रीतम है। छोटे बच्चे की तरह मीरा ने कृष्ण को नहीं चुना है; संगी—साथी की तरह, मित्र की तरह। जैसे कोई स्त्री पति को चुने, ऐसा मीरा ने कृष्ण को चुना है।

ओशो❤️❤️

Madhu honey myths

आयुर्वेद में शहद को अमृत के समान माना गया हैं... मेडिकल साइंस भी शहद को सर्वोत्तम एंटीबायोटिक का भंडार मानती हैं लेकिन आश्चर्य इस बात ये है कि शहद की एक बूंद भी अगर कुत्ता चाट ले तो वह तुरन्त मर जाता हैं यानी जो मनुष्यों के लिये अमृत हैं वह शहद कुत्ते के लिये साइनाइड हैं...

गाय के शुद्ध देशी घी को भी आयुर्वेद में अमृत मानता हैं और मेडिकल साइंस भी इसे अमृत समान ही कहता हैं पर आश्चर्य ये है कि मक्खी घी नही खा सकती... खाना तो दूर अगर मक्खी गलती से देशी घी पर मक्खी बैठ भी जाये तो अगले पल वह मर जाएगी...

आयुर्वेद में हाथ से बनी मिश्री को अमृत तुल्य बताया गया हैं लेकिन आश्चर्य है कि अगर गधे को एक डली मिश्री खिला दी जाए तो अगले ही पल उसके प्राण पखेरू उड़ जाएंगे...

नीम के पेड़ पर लगने वाली पकी हुई निम्बोली में सब रोगों को हरने वाले गुण होते हैं और आयुर्वेद उसे भी अमृत ही कहता है... मेडिकल साइंस नीम के बारे में क्या राय रखता हैं बताने की जरूरत तो होगी नहीं.. लेकिन रात दिन नीम के पेड़ पर रहने वाला कौवा अगर गलती से निम्बोली को चख भी ले तो उसका गला खराब हो जाएगा, खाने पर तो कौवे की मृत्यु निश्चित ही हैं...

इस धरती पर ऐसा बहुत कुछ हैं जो अमृत समान हैं, अमृत तुल्य है पर इस धरती पर कुछ ऐसे जीव भी हैं जिनके भाग्य में वो अमृत नही हैं... आचार्य बालकृष्ण के एम्स में भर्ती होने पर व्यक्तिगत ईर्ष्या के चलते जो लोग भारत की प्राचीन उपचार पद्धति का मज़ाक उड़ा रहे है वो असल में मक्खी, कुत्ते, कौवे और गधे ही हैं... इनके भाग्य में वो अमृत है ही नहीं... इन्हें आयुर्वेद रूपी अमृत की महत्ता समझाने में समय नष्ट न कीजिये...

Sri Krishna made Mahabharata

जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में भगवान श्रीकृष्ण पर विशेष !

" महाभारत " के प्रधान नायक 

        " टुकड़े  - टुकड़े में बिखरे भारत को श्रीकृष्ण ने महाभारत बनया ,इसकी परिकल्पना यदि किसी ने की थी तो वे थे - महर्षि गर्ग ।पांडवों और कौरवों के बीच का युद्ध महाभारत नहीं है । " महाभारत " है परस्पर विवाद में ,लड़ाइयों में उलझे छोटे -
छीटे राज्यों , छोटी-छोटी जातियों ,छोटे-छोटे सम्प्रदायों को एक आदर्श में गूँथकर
भारत को महाभारत में गूँथकर भारत को महाभारत के रूप में प्रतिष्ठित करने की
कथा "।
       मैं पहले ही बोल चूका हूँ की तत्कालीन भारतवर्ष छोटे -छोटे अनेक राज्यों में विभक्त था ।इनके प्रधान या राजा प्रायः पड़ोसी राज्य पर ,अपने राज्य की सीमा विस्तार के लिए तथा उस राज्य से टैक्स प्राप्त करने के लिए आक्रमण कर लड़ाई ठान देते थे ।अंग ,बंग ,कलिंग ,विदेह ,काशी आदि अनेक राज्य थे और आपस में सबसे ठनती रहती थी ।अंग ( भागलपुर और मुंगेर ),मगध ( गया और पटना ) पड़ोसी राज्य थे गंगा के दक्षिण और गंगा के उत्तर वैशाली ।शोण नद (वर्तमान सोन नदी ) के पश्चिम था काशी राज्य ।ये सब आपस में खोज-खोज कर लड़ते रहते थे ।
        मगध और अंग के बीच में बहुत बड़ा ,बहुत उपजाऊ ,लम्बा-चौड़ा भूखण्ड था
(आज भी है ) ।रबी की फसल वहां खूब होती थी ।यह क्षेत्र वर्षा के दिनों में समूचा पानी में डूब जाता था । पानी में डूबा रहने के कारण इस भूखण्ड को अम्बभूमि कहते थे ।जम्बूद्वीप के समान ही हुआ यह दूसरा नाम अम्बभूमि ।यहां रहने वाले अम्बस्थ या
अम्बष्ठ कहे जाने लगे ।यह भूमि थी सोने की चिड़िया ।अतः इसके लिए अंग , बंग ,
मगध और वैशाली के बीच बराबर लड़ाइयां होती ही रहती थी , कभी -कभी काशी भी धावा कर देता था ।कभी यह अंग के कब्जे में तो कभी मगध के और कभी वैशाली या विदेह उस पर अपन पंजा जमा लेता ,जिसकी लाठी उसकी भैंस ।
       उस समय अनेक जातियां थी ,परन्तु कोई सुदृढ़ सामाजिक संगठन नहीं था और
सामूहिकता का नितांत अभाव था ।ब्यक्तिगत जीवन में लोग सदाशिव को आदर्श मानते थे ।सदाशिव के द्वारा प्रवर्तित स्थापत्य कला , शिल्प नृत्य ,संगीत ,साहित्य आदि ललित कलाओं के सिद्धांत ही आदर्श थे ।सदाशिव के प्रति सब जातियों में अटूट श्रद्धा रहने पर भी सब में एकनिष्ठ सामाजिक आदर्श के आभाव के कारण सामाजिक दृष्टिभंगी नहीं थी ।अतः मंगोल ,द्राविड़ ,नीग्रो ,ऑस्ट्रिक इत्यादि जातियों की अपनी जातिगत
स्वतन्त्रता बनी रही ।उन सब में मिलजुल कर वृहत्तर सामाजिक ,आर्थिक ,राजनैतिक
क्षेत्र में धर्म का का संचार नही हो  पाया था। धर्म ही तो ब्यक्ति-ब्यक्ति को समाज रूप में धारण करता है - धर्मो धारयते प्रजा: ।सामाजिक धर्माभव के आभाव में राजनैतिक रूप से आपस में लड़ते-झगड़ते , छोटे -छोटे राज्यों में बंटा हुआ था और सामाजिक रूप में भी जातियों ,उपजातियों में बिखरा हुआ था ।ऐसे विच्छिन्न भारत को एक
" महाभारत " के रूप में समुन्नत करने का प्रथम आयोजन किया था श्रीकृष्ण ने ।
श्रीकृष्ण भारत की इस अवस्था का कारण जानते थे ।वे देख रहे थे जनसाधारण ब्यक्ति
चाहे जैसा भी हो किन्तु उसमें सामूहिक भाव बिलकुल नही बन पाया है ।श्रीकृष्ण ने इस हेतु सामूहिक भाव भरकर सामाजिक एकता जगाई जिससे भारत महाभारत बनता।
        बिखरी हुई जातियों में परस्पर विश्वास उतपन्न कर उन्हें निकट सम्पर्क सूत्र में बांधने के लिए श्रीकृश्ण ने अन्तर्जातीय विवाह की प्रेरणा दी ।इसमें वे स्वयं आगे बढ़े और पांडवों को प्रेरित किया। पांडव वर्तमान मेरठ-हरियाणा के थे ।जाति की दृष्टि से वे ऑस्ट्रिक -आर्य थे ,जिनकी सन्तान आज के जाट हैं ।ये भारत के प्रथम अधिवासी हैं ।
उत्तर प्रदेश का पश्चिमी इलाका मेरठ के पास का स्थान और पंजाब का पूर्वी भाग अर्थात वर्तमान हरियाणा उनका वास स्थान था ।पश्चिम भूभाग के निवासी इन पांडवों का सम्पर्क सूत्र श्रीकृष्ण की प्रेरणा से भारत के सुदूर प्रांतों तक फैल गया ।भीम का
विवाह हिडिम्बा से हुआ ।वह नागालैंड की मंगोल कन्या थी ।अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा
मणिपुर की थीं ।वह भी मंगोल जाति की थीं ।श्रीकृष्ण ने स्वयं नेफा की रुक्मिणी से विवाह किया था ।इस प्रकार श्रीकृष्ण ने समस्त उत्तरापथ को पारिवारिक सम्बन्ध-सूत्र में बांधकर जातिगत एकता की स्थापना में सफलता पाई ।उनके प्रयास से इन छोटी बड़ी जातियों को मिलाकर एक भारतीय जाति का रूप खड़ा हो सका , जिसमें सब जातियां समा गयीं ।
        उस युग में जनसाधारण ने सदाशिव का आधिपत्य या प्रधानता स्वीकार कर ली थी ,परन्तु उस समय अनेक अनुष्ठानमूलक विधियों का ही प्रचलन था ।धर्मसाधना नाम की कोई चीज नहीं थी ।धर्म के नाम पर अनेक विधियां प्रचलित थीं ।बड़े-बड़े ऋषि -
मुनि थे । महर्षि गर्ग के समान वैष्णव भी थे ,मामा कंस के समान शाक्त भी थे ।इनके
अतिरिक्त कौल साधकों का भी वर्ग था ।इन सब वर्गों की विशेषता यह थी कि राजा हो या प्रजा ,सब पर साम्प्रदायिक दृष्टि का प्रभाव था ।
       ऊपर कंस का प्रसंग आया है ।वे शूरसेन देश के राजा थे ।कृष्ण के मामा थे और कट्टर शाक्त ।इतना ही नहीं , अपने युग के अत्यंत निष्ठुर- नृशंस -अत्याचारी रूप में ही
उन्हें आज भी माना जाता है ।थे भी वैसे ही ।इनके कुकृत्यों से जन-जन को त्राण दिलाने के लिए महर्षि गर्ग को इनके विरुद्ध षडयंत्र करना पड़ा था । कंस ने शूरसेन
प्रदेश में गर्ग का प्रवेश निषिद्ध कर दिया था ।गुप्त रूप से महर्षि गर्ग की हत्या  के लिए
विष कन्या नियुक्त की थी ,पर प्रकट रूप से उनके सम्मान का पूरा आयोजन करता था ।जैसे कंस गर्ग के विरुद्ध षड़यंत्र कर रहा था वैसे ही गर्ग ने भी कांटा से कांटा निकालने का षड़यंत्र किया ।कंस तो मूँछों पर ताव देता रहा और गर्ग ने कृष्ण को मामा के विरुद्ध
ला खड़ा किया ,जिसने कंस का काँटा उखाड़ फेंका ।कृष्ण माता-पिता के साथ जेल में थे ।उन्हें बाहर निकलने का षड़यंत्र किया था ।महर्षि गर्ग थे नन्द और वसुदेव के चचेरे भाई ।नन्द और उपानन्द के जेठ थे ।ये जाति में विप्र थे ,वैष्णव विप्र ,ध्यान-धारणा ,
साधन-भजन करने वाले रमता- राम ।उस युग में जाति भेद या वर्ण ब्यवस्था वैसी कठोर नहीं थी ।वैदिक युग के समान नाम मात्र की ही थी ।वर्ण ब्यवस्था बाद में कठोर हुई ।कृष्ण के पिता थे सेनापति ।अतः क्षत्रिय वृत्ति अपनाने के कारण क्षत्रिय थे ।कृष्ण के दूसरे अभिवावक नन्द-उपानन्द गोप थे -यादव अर्थात वैश्य ।इस तरह महर्षि गर्ग
विप्र , वसुदेव क्षत्रिय और नन्द वैश्य ।तीनो तीन जाति के जाने जाते थे ।यह तत्कालीन वर्ण ब्यवस्था का अच्छा उदाहरण है ।जेल में वसुदेव असमर्थ थे ।रमताराम गर्ग ने कृष्ण को जेल से निकलने की ब्यवस्था की और समय आने पर कृष्ण ने कंस का संहार
कर अपने माता-पिता को मुक्त किया।महर्षि गर्ग ने ध्यानावस्था में कृष्ण के बारे में जाना , उनके लोकोत्तर पुरुषोत्तम स्वरूप का आभास पाया था ।अतः कृष्ण को जेल से निकाला ।कृष्ण नाम भी गर्ग ने ही रखा ।
     कृष्ण ने तत्कालीन सामाजिक ,राजनीतिक ,आर्थिक क्षेत्रों में जो कुछ क्रान्ति की ,
टुकड़े-टुकड़े में बिखरे भारत को एक महाभारत बनाया , इसकी परिकल्पना यदि किसी ने की थी तो वे थे -महर्षि गर्ग ।पांडवों और कौरवों के बीच का युद्ध महाभारत नहीं है।
महाभारत है परस्पर विवाद में , लड़ाइयों में उलझे छोटे-छोटे राज्यों , छोटे-छोटे सम्प्रदायों को एक बड़े आदर्श में गूँथकर भारत को महाभारत के रूप में प्रतिष्ठित करने की कथा ।इसके नायक न युधिष्ठिर हैं और न दुर्योधन । महाभारत के नायक हैं -
भगवान श्रीकृष्ण ।
।।  सदगुरु श्री श्री आनन्दमूर्ति जी  ।।

Man is an actor

मनुष्य मात्र ही महानाट्य का अभिनेता
    
           तारक ब्रह्म का संकल्प हुआ - वे जीव को मुक्ति देंगे । तब मुक्ति केवल वही पाता है जो मुक्ति चाहता है । मुक्ति चाहने पर या मुक्ति कामना करने पर मनुष्य को सद्गुरु - प्राप्ति होती है । तब बात यह हुईं कि - कोई मुक्ति चाहता है , कोई या तो नहीं चाहता है । कोई मुक्ति चाहने पर भी नहीं पाता है । फिर कोई नहीं चाहने पर पा जाता है । यह किस प्रकार की बात हुई ? कोई - कोई कहता है -' मांगना मरण समान है मत मांगो कोई ' । फिर यह भी कहते है ' - ' बिना मांगे मोती मिले , मांगे मिले न भीख ' । यह तो अद्भुत बात है , रहस्यमय बात है और यह जो रहस्यमय है यही हुआ तारक ब्रह्म का नाटक ।
           जीव नाटक का एक चरित्र है । मनुष्य इस पृथ्वी पर आया है । उसके लिए एक निर्दिष्ट भूमिका है ,और उसी भूमिका को ठीक - ठीक ढंग से पालन करना होगा । इस बात को ही सब समय स्मरण रखना होगा कि मैं उसी दैवी नाटक का एक चरित्र हूँ । इस नाटक का नाट्यकार या रचयिता कौन है ? हाँ , वे तारकब्रह्म हैं ।
            इस प्रसंग में पुराने एक किस्से की याद आ जाती है । लड़ाई के बाद कुरुक्षेत्र एक विराट श्मशान भूमि में परिणत हो गया था । अब युद्ध के अंत में एक दिन कौरव पक्ष के लोग वहां पर आये । उनमें कुछ महिलाएं तथा दो - चार वृद्ध पुरुष भी थे । फिर , पांडव पक्ष से भी कुछ लोग आये थे । उनमें कुंती और कौरव , जननी गांधारी भी थी । फिर उस पक्ष के अंध धृतराष्ट्र भी आये ।
             उस श्मशान भूमि में आकर सभी रो रहे थे । कौरव भी रो रहे थे ,  फिर इतना ही नहीं गांधारी भी रो रही थी । कारण , इस युद्ध में उन्होंने अपने प्रिय शत पुत्रों को खोया था । कृष्ण गंधारी के समीप आकर कुछ बोले , ' माँ , आप रो क्यों रही हैं । मृत्यु तो जगत का एक स्वाभाविक नियम है । ' जातस्य हि ध्रुवोर्मृत्यु :' । जिसका जन्म हुआ है मृत्यु तो उसकी होगी ही । इसलिए इसमें रोने की कौन सी बात है ।
             गंधारी ने कहा , " हाँ , कृष्ण , तुम आज जिस बात को कह रहे हो , मैं भी मृत्यु वियोग से कातर दूसरों को ठीक इसी बात को ही कहती हूँ । ठीक यही कहकर सांत्वना देती थी । इस बात को तुम भी जानते हो , मैं भी जानती हूँ । इसलिए इस बात को कहने की क्या आवश्यकता है ?" उन्होंने कहा , - " कृष्ण आज तुम हम लोगों के शोक में सांत्वना देंने के लिए यहां आये हो । किन्तु मैं तुमसे पूछती हूँ , इतने बड़े कांड के पीछे किसकी बुद्धि काम कर रही थी , कौन इस विराट परिकल्पना का रचयिता है ? तुम्हीं न वह ब्यक्ति हो ?"
            कृष्ण ने उत्तर में कहा - " जिन्होंने अन्याय किया , जिसने पाप किया , उनको दण्ड मिला । इसमें मैं क्या कर सकता हूँ ?" गांधारी ने पुनः कहा - " अभी तक जो घटा है वह सभी ही ठीक है ।कारण , क्रिया की प्रतिक्रिया तो होगी ही । किन्तु मेरी बात है , तुम स्वयं तारक ब्रह्म हो , तुम्हारा काम जीव को मुक्ति देना है । तुम जिसे चाहो मुक्ति दे सकते हो । तारक ब्रह्म के रूप में चाहने पर सृष्टि भी कर सकते हो , ध्वंस भी कर सकते हो । अपने द्वारा रचित नाटक में तुम ऐसे कई एक चरित की रचना करते हो जो खूब ही साधु ब्यष्टि हैं , आदर्श चरित्र हैं । सतकर्म करने पर मुक्ति लाभ होता है - यह दूसरों को शिक्षा देने के लिये  इस प्रकार के चरित्र की रचना करते रहते हो । कुरुक्षेत्र में यह जो इतना बड़ा महायुद्ध हो गया , इस नाटक को तुम इच्छा करने से मेरे शत पुत्रों को साधु की भूमिका में तथा पांडवों को असाधु की भूमिका में अवतीर्ण करा सकते थे ; उससे मेरे शत पुत्रों को मोक्षलाभ और पांडवों का नरक वास हो सकता था । तुम तारक ब्रह्म हो , तुम्हीं तो सब कुछ के रचयिता हो , और अब मुझे रुलाकर बाद में सांत्वना देने आये हो ?"
           बात तो ठीक ही है , तारक ब्रह्म अपनी परिकल्पना की रचना करते हैं इतिहास सृष्टि के लिए , लोक शिक्षा के लिए । सतकर्म करने पर सदगति होती है और असत् कर्म करने पर असत गति होती है । इस महान शिक्षा को वे मानव मन में पिरो देना चाहते हैं ।
          अतः पर गल्प का दूसरा अंश है , गांधारी अभिशाप देकर कहती हैं - " कृष्ण मैं तुम्हें अभिशाप दूँगी "। कृष्ण ने कहा - " अभिशाप दें , मैं तुम्हें अनुमति देता हूँ " ।
             गांधारी तब यह अभिशाप देते हुए बोली - " कृष्ण , तेरी आँखों के सामने तुम्हारा यदुवंश ध्वंस होवे ।" कृष्ण ने केवल कहा - ' तथास्तु ' ।
            मनुष्य को सदा इस बात को याद रखना होगा तारक ब्रह्म रचित इस विराट विश्वनाट्य में जीव मात्र ही एक एक चरित्र है । उतना ही उसका असली परिचय नहीं है । नाटक में जिस तरह कोई राजा की भूमिका में अभिनय करता है किन्तु वही आदमी घर में हो सकता है , दो मूठी भात भी न पाता हो । कोई नाटक में गरीब प्रजा की भूमिका करता हो , किन्तु वास्तव में हो सकता है वह एक बड़ा धनी ब्यक्ति हो ।
              स्मरण रखना होगा - " हम लोग एक विशेष नाट्य की भूमिका में अभिनय कर रहे हैं , केवल नाट्य में हमें जिस तरह का अभिनय करने को कहा गया है , उसी तरह ठीक अभिनय करते जाएंगे , वही मनुष्य का कर्तव्य है । मनुष्य के लिए इससे अधिक सोचना अर्थहीन है , उसकी क्षमता के बाहर भी है ।

।।  सद्गुरु श्री श्री आनन्दमूर्ति जी  ।।

Friday, 23 August 2019

Karna and Krishna

Historical Mythological

*पहली बात,*
*महाभारत में*
*कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछी...*

मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया,
क्या ये मेरा अपराध था कि मेरा जन्म
एक अवैध बच्चे के रूप में हुआ?


*दूसरी बात*
*महाभारत में*
*कर्ण ने श्रीकृष्ण से पूछी...*

दोर्णाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना
कर दिया था क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय
नहीं मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था.


*तीसरी बात*
*महाभारत में*
*कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछी...।*

द्रौपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित
किया  गया,  क्योंकि  मुझे  किसी
राजघराने का कुलीन व्यक्ति नहीं
समझा गया.


*श्री कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते*
*हुए कर्ण को बोले, सुन...*

हे कर्ण, मेरा जन्म जेल में हुआ था.

मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु
मेरा   इंतज़ार   कर   रही   थी.

जिस रात मेरा जन्म हुआ, उसी रात
मुझे माता-पिता से अलग होना पड़ा.

मैने गायों को चराया और गायों के
गोबर को अपने हाथों से उठाया.

जब मैं चल भी नहीं पाता था, तब
मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए.

      मेरे पास
कोई सेना नहीं थी,
कोई शिक्षा नहीं थी,
कोई गुरुकुल नहीं था,
कोई महल नहीं था,
       फिर भी
मेरे मामा ने मुझे अपना
सबसे बड़ा शत्रु समझा.

बड़ा होने पर मुझे ऋषि
सांदीपनि के आश्रम में
जाने का अवसर मिला.

जरासंध के प्रकोप के कारण, मुझे अपने
परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रान्त,
समुद्र के किनारे द्वारका में बसना पड़ा.


*हे कर्ण...*
किसी का भी जीवन चुनौतियों से
रहित नहीं है.  सबके जीवन में
सब   कुछ   ठीक   नहीं   होता.

सत्य क्या है और उचित क्या है?
ये हम अपनी आत्मा की आवाज़
से   स्वयं   निर्धारित   करते   हैं.

इस बात से *कोई फर्क नहीं पड़ता,*
कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है.

इस बात से *कोई फर्क नहीं पड़ता,*
कितनी बार हमारा अपमान होता है.

इस बात से भी *कोई फर्क नहीं पड़ता,*
कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन
होता है.
*फ़र्क़ तो सिर्फ इस बात से पड़ता है*
*कि हम उन सबका सामना किस प्रकार ज्ञान  के साथ करते हैं.*
*ज्ञान है तो ज़िन्दगी हर पल मौज़ है,*
*वरना समस्या तो सभी के साथ रोज है.*
          👏👏जय श्री कृष्णा 👏👏

Refined oils are poison

सबसे ज्यादा मौतें देने वाला भारत में कोई है l
तो वह है...
               *रिफाईनड तेल*

केरल आयुर्वेदिक युनिवर्सिटी आंफ रिसर्च केन्द्र के अनुसार, हर वर्ष 20 लाख लोगों की मौतों का कारण बन गया है... *रिफाईनड तेल

रिफाईनड तेल से *DNA डैमेज, RNA नष्ट, , हार्ट अटैक, हार्ट ब्लॉकेज, ब्रेन डैमेज, लकवा शुगर(डाईबिटीज), bp नपुंसकता *कैंसर* *हड्डियों का कमजोर हो जाना, जोड़ों में दर्द,कमर दर्द, किडनी डैमेज, लिवर खराब, कोलेस्ट्रोल, आंखों रोशनी कम होना, प्रदर रोग, बांझपन, पाईलस, स्केन त्वचा रोग आदि!. एक हजार रोगों का प्रमुख कारण है।*

*रिफाईनड तेल बनता कैसे हैं।*

बीजों का छिलके सहित तेल निकाला जाता है, इस विधि में जो भी Impurities तेल में आती है, उन्हें साफ करने वह तेल को स्वाद गंध व कलर रहित करने के लिए रिफाइंड किया जाता है
*वाशिंग*-- वाशिंग करने के लिए पानी, नमक, कास्टिक सोडा, गंधक, पोटेशियम, तेजाब व अन्य खतरनाक एसिड इस्तेमाल किए जाते हैं, ताकि Impurities इस बाहर हो जाएं |इस प्रक्रिया मैं तारकोल की तरह गाडा वेस्टेज (Wastage} निकलता है जो कि टायर बनाने में काम आता है। यह तेल ऐसिड के कारण जहर बन गया है।

*Neutralisation*--तेल के साथ कास्टिक या साबुन को मिक्स करके 180°F पर गर्म किया जाता है। जिससे इस तेल के सभी पोस्टीक तत्व नष्ट हो जाते हैं।

*Bleaching*--इस विधी में P. O. P{प्लास्टर ऑफ पेरिस} /पी. ओ. पी. यह मकान बनाने मे काम ली जाती है/ का उपयोग करके तेल का कलर और मिलाये गये कैमिकल को 130 °F पर गर्म करके साफ किया जाता है!

*Hydrogenation*-- एक टैंक में तेल के साथ निकोल और हाइड्रोजन को मिक्स करके हिलाया जाता है। इन सारी प्रक्रियाओं में तेल को 7-8 बार गर्म व ठंडा किया जाता है, जिससे तेल में पांलीमर्स बन जाते हैं, उससे पाचन प्रणाली को खतरा होता है और भोजन न पचने से सारी बिमारियां होती हैं।
*निकेल*एक प्रकार का Catalyst metal (लोहा) होता है जो हमारे शरीर के Respiratory system,  Liver,  skin,  Metabolism,  DNA,  RNA को भंयकर नुकसान पहुंचाता है।

रिफाईनड तेल के सभी तत्व नष्ट हो जाते हैं और ऐसिड (कैमिकल) मिल जाने से यह भीतरी अंगों को नुकसान पहुंचाता है।

आप गंदी नाली का पानी पी लें, उससे कुछ भी नहीं होगा क्योंकि हमारे शरीर में प्रति रोधक क्षमता उन बैक्टीरिया को लडकर नष्ट कर देता है, लेकिन रिफाईनड तेल खाने वाला व्यक्ति की अकाल मृत्यु होना निश्चित है!

*दिलथाम के अब पढे*

*हमारा शरीर करोड़ों Cells (कोशिकाओं) से मिलकर बना है, शरीर को जीवित रखने के लिए पुराने Cells नऐ Cells से Replace होते रहते हैं नये Cells (कोशिकाओं) बनाने के लिए शरीर खुन का उपयोग करता है, यदि हम रिफाईनड तेल का उपयोग करते हैं तो खुन मे Toxins की मात्रा बढ़ जाती है व शरीर को नए सेल बनाने में अवरोध आता है, तो कई प्रकार की बीमारियां जैसे* -— कैंसर *Cancer*,  *Diabetes* मधुमेह, *Heart Attack* हार्ट अटैक, *Kidney Problems* किडनी खराब,
*Allergies,  Stomach Ulcer,  Premature Aging,  Impotence,  Arthritis,  Depression,  Blood pressure आदि हजारों बिमारियां होगी।*

रिफाईनड तेल बनाने की प्रक्रिया से तेल बहुत ही मंहगा हो जाता है, तो इसमे पांम आंयल मिक्स किया जाता है! (पांम आंयल सवमं एक धीमी मौत है)

प्रत्येक तेल कंपनियों को 40 %
खाद्य तेलों में पांम आंयल मिलाना अनिवार्य है, अन्यथा लाईसेंस रद्द कर दिया जाएगा!
इससे अमेरिका को बहुत फायदा हुआ, पांम के कारण लोग अधिक बिमार पडने लगे, हार्ट अटैक की संभावना 99 %बढ गई, तो दवाईयां भी अमेरिका की आने लगी, हार्ट मे लगने वाली  स्प्रिंग(पेन की स्प्रिंग से भी छोटा सा छल्ला) , दो लाख रुपये की बिकती हैं,
यानी कि अमेरिका के दोनो हाथों में लड्डू, पांम भी उनका और दवाईयां भी उनकी!

*अब तो कई नामी कंपनियों ने पांम से भी सस्ता,, गाड़ी में से निकाला काला आंयल* *(जिसे आप गाडी सर्विस करने वाले के छोड आते हैं)*
*वह भी रिफाईनड कर के खाद्य तेल में मिलाया जाता है, अनेक बार अखबारों में पकड़े जाने की खबरे आती है।*

सोयाबीन एक दलहन हैं, तिलहन नही...
दलहन में... मुंग, मोठ, चना, सोयाबीन, व सभी प्रकार की दालें आदि होती है।
तिलहन में... तिल, सरसों, मुमफली, नारियल, बादाम,ओलीव आयल, आदि आती है।
अतः सोयाबीन तेल ,  पेवर पांम आंयल ही होता है। पांम आंयल को रिफाईनड बनाने के लिए सोयाबीन का उपयोग किया जाता है।
सोयाबीन की एक खासियत होती है कि यह,
प्रत्येक तरल पदार्थों को सोख लेता है,
पांम आंयल एक दम काला और गाढ़ा होता है,
उसमे साबुत सोयाबीन डाल दिया जाता है जिससे सोयाबीन बीज उस पांम आंयल की चिकनाई को सोख लेता है और फिर सोयाबीन की पिसाई होती है, जिससे चिकना पदार्थ तेल तथा आटा अलग अलग हो जाता है, आटा से सोया मंगोडी बनाई जाती है!
आप चाहें तो किसी भी तेल निकालने वाले के सोयाबीन ले जा कर, उससे तेल निकालने के लिए कहे!महनताना वह एक लाख रुपये  भी देने पर तेल नही निकालेगा, क्योंकि. सोयाबीन का आटा बनता है, तेल नही!

फॉर्च्यून.. अर्थात.. आप के और आप के परिवार के फ्यूचर का अंत करने वाला.

सफोला... अर्थात.. सांप के बच्चे को सफोला कहते हैं!
*5 वर्ष खाने के बाद शरीर जहरीला
10 वर्ष के बाद.. सफोला (सांप का बच्चा अब सांप बन गया है.
*15 साल बाद.. मृत्यु... यानी कि सफोला अब अजगर बन गया है और वह अब आप को निगल जायगा.!*

*पहले के व्यक्ति 90.. 100 वर्ष की उम्र में मरते थे तो उनको मोक्ष की प्राप्ति होती थी, क्योंकि.उनकी सभी इच्छाए पूर्ण हो जाती थी।*

*और आज... अचानक हार्ट अटैक आया और कुछ ही देर में मर गया....?*
*उसने तो कल के लिए बहुत से सपने देखें है, और अचानक मृत्यु..?*
अधुरी इच्छाओं से मरने के कारण.. प्रेत योनी मे भटकता है।

*राम नही किसी को मारता.... न ही यह राम का काम!*
*अपने आप ही मर जाते हैं.... कर कर खोटे काम!!*
गलत खान पान के कारण, अकाल मृत्यु हो जाती है!

*सकल पदार्थ है जग माही..!*
*कर्म हीन नर पावत नाही..!!*
अच्छी वस्तुओं का भोग,.. कर्म हीन, व आलसी व्यक्ति संसार की श्रेष्ठ वस्तुओं का सेवन नहीं कर सकता!

*तन मन धन और आत्मा की तृप्ति के लिए सिर्फ ओलीव आयल ,राइस ब्रान , कच्ची घाणी का तेल, तिल सरसों, मुमफली, नारियल, बादाम आदि का तेल ही इस्तेमाल करना चाहिए!* पोस्टीक वर्धक और शरीर को निरोग रखने वाला सिर्फ कच्ची घाणी का निकाला हुआ तेल ही इस्तेमाल करना चाहिए!
आज कल सभी कम्पनी.. अपने प्रोडक्ट पर कच्ची घाणी का तेल ही लिखती हैं!
वह बिल्कुल झूठ है.. सरासर धोखा है!
कच्ची घाणी का मतलब है कि,, लकड़ी की बनी हुई, औखली और लकडी का ही मुसल होना चाहिए! लोहे का घर्षण नहीं होना चाहिए. इसे कहते हैं.. कच्ची घाणी.
जिसको बैल के द्वारा चलाया जाता हो!
आजकल बैल की जगह मोटर लगा दी गई है!
लेकिन मोटर भी बैल की गती जितनी ही चले!
लोहे की बड़ी बड़ी सपेलर (मशिने) उनका बेलन लाखों की गती से चलता है जिससे तेल के सभी पोस्टीक तत्व नष्ट हो जाते हैं और वे लिखते हैं.. कच्ची घाणी...
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